Concepts of psychology and Education Psychology (unit-01 part-1)

 


(1) मनोविज्ञान का अर्थ (Meaning of Psychology)

                         मानवीय व्यवहार एक जटिल पहेली है। सभी लोग मानवीय व्यवहार को समझने की चेष्टा करते हैं। आरम्भ में दार्शनिकों ने इसे समझने का बीड़ा उठाया और इस प्रकार के व्यवहार के कारण मालूम करने का प्रयत्न किया। इस प्रकार दर्शनशास्त्र को मनोविज्ञान का पिता कहा जा सकता है। बाद में जब काल्पनिक विचारक्रिया कम हुई और बाह्यमुखी प्रयोगात्मक खोज बढ़ी तो धीरे-धीरे इसने एक स्वीकारात्मक विज्ञान (Positive Science) का रूप धारण कर लिया। अब इसे अध्ययन की एक स्वतन्त्र शाखा माना जाता है। विभिन्न विश्वविद्यालयों में मनोविज्ञान के स्वतन्त्र विभाग खुल गए हैं और कार्य कर रहे हैं

(1) मनोविज्ञान आत्मा का ज्ञान है (Psychology as science of soul) शब्द 'साईकालोजी' (Psychology) दो शब्दों साईके (Psyche) और 'लोगस' (Logos) से मिलकर बना है। 'साईके' का अर्थ है आत्मा' (Soul) और 'लोगस' का अर्थ है 'बातचीत' (Talk) अत मनोविज्ञान को  आत्मा सम्बन्धी बातचीत माना जाता था। इसके बाद यह अनुभव किया गया है कि मनोविज्ञान को यदि आत्मा सम्बन्धित बातचीत के स्थान पर आत्मिक विज्ञान कहा जाए तो अधिक ठीक है, क्योंकि 'विज्ञान' एक अच्छा शब्द है और इसके अच्छा होने के कारण निम्नलिखित हैं

() विज्ञान बातचीत की अपेक्षा प्रणालीबद्ध तथा पूर्ण होता है। बातचीत बेतुकी तथा बेहूदा भी हो सकती है। यह प्रायः अनिश्चित और अपूर्ण होती है।

() विज्ञान उस ज्ञान पर निर्धारित होता है जिसकी नींव अवलोकित तथ्य होते हैं।

() विज्ञान निश्चित ज्ञान की ओर संकेत करता है। यह हमें कुछ सीमा तक भविष्यवाणी करने की शक्ति प्रदान करता है।

() विज्ञान अपने तकनीकी परिभाषिक शब्दों अथवा विशेष तत्त्वों का प्रयोग करता है।

इस प्रकार शाब्दिक तौर पर मनोविज्ञान आत्मा का विज्ञान है परन्तु वास्तव में यह ठीक नहीं।

आलोचना (Criticism) :

1. आध्यात्मिक धारणा (Metaphysical concept) - हमें आत्मा के स्वरूप, जन्म तथा स्थान के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं। इसका कोई भौतिक अस्तित्व नहीं। इसे तो देखा जा सकता है और ही सुना। इसका न तो भार होता है और ही घनफल। यह एक आध्यात्मिक धारणा है।

2. धार्मिक धारणा (Theological concept)- मनोविज्ञान का सम्बन्ध ज्ञान की अपेक्षा धर्म (Religion) से अधिक दर्शाया जाता है क्योंकि यह धारणा ब्रह्म-ज्ञान के साथ सम्बन्ध रखती है। यह धर्म तथा ईश्वर के बारे में कुछ सिद्धान्तों की चर्चा करता है।

3. काल्पनिक विज्ञान (Speculative Science) - आत्मा हमारे विज्ञान को काल्पनिक विज्ञान बना देता है क्योंकि इसका तो अवलोकन किया जा सकता है औरन ही प्रयोग, अतः यह पुष्टि नहीं करता। इसलिए मनोविज्ञान की परिभाषा वैज्ञानिक होने के कारण रद्द हो जाती है।

(2) मनोविज्ञान मन का ज्ञान (Psychology as science of mind)

         मनोविज्ञान को आत्मा की बजाय मन का अध्ययन माना गया है क्योंकि 'मन' 'आत्मा' से अच्छा शब्द समझा गया, इसलिए प्रयोग होने लगा।

() जन-साधारण का मन के बारे विचार (Layman's vicw about mind) -मन शरीर या हृदय में कुछ चीज़ है जो सोचती, अनुभव करती तथा क्रिया करती है। यदि मन हमारे भीतर कोई रहस्यपूर्ण वस्तु है तो यह तो बिल्कुल आत्मा वाली बात ही हुई। अतः इस परिभाषा को भी रद्द करना पड़ेगा।

() मनोवैज्ञानिक का मन बारे विचार (Psychologist's view about mind) - यह मानसिक क्रियाओं का संग्रह है। यह मनुष्य के आंतरिक अनुभवों का प्रतीक है जैसे कि हर्ष तथा दुःख, आशा और चाह, स्वप्न तथा इच्छायें

मन की विशेषताएं (Characteristics of mind) :

1. निरन्तरता (Continuity) - मन निरन्तर है। व्यक्ति की मानसिक क्रियाओं में निरन्तरता होती है। अतः मन की तुलना बहती हुई नदी से की गई है।

2. इकाई अथवा एकात्मकता (Unity) - मन एक इकाई है। यह तर्क, चिन्तन, स्मृति, कल्पना आदि अलग-अलग प्रक्रियाओं के रूप में कार्य नहीं करता। इन प्रक्रियाओं को मन से अलग-अलग नहीं किया जा सकता। मन एक इकाई है जो सोचता है, समझता है, स्मरण करता है तथा कल्पना करता है।

3. क्रियाशील (Active) - मन क्रियाशील है। यह निरन्तर किसी--किसी क्रिया में लगा रहता है।

4. अभौतिक अथवा अमूर्त (Immaterial) - मन अभौतिक अथवा अमूर्त है। यह मांस अथवा किसी अन्य पदार्थ से नहीं बना जिसे डॉक्टर देख सकें या छू सकें। चाहे मन का मस्तिष्क (Brain) से सम्बन्ध है परन्तु इसे ज्ञानेन्द्रियों से देखा या छुआ नहीं जा सकता।

5. निजी (Private) - मन निजी है। मेरा डॉक्टर मेरे साँस अथवा खून के भ्रमण को मुझसे अधिक अच्छी तरह जान सकता है जो कि शारीरिक क्रियाएं हैं। परन्तु कोई भी मेरे सिवाय मेरे विचारों अथवा इच्छाओं को प्रत्यक्ष रूप से नहीं जान सकता। मैं इनके बारे में दूसरे लोगों को बता सकता हूं अथवा दूसरे मेरे चेहरे अथवा हरकतों से अनुमान लगा सकते हैं कि मैं क्या सोच रहा हूं, परन्तु कोई भी व्यक्ति मेरे विचारों को नहीं सोच सकता अथवा मेरी भावनाओं को महसूस नहीं कर सकता। इस रूप में मन निजी है।

आलोचना (Criticism) :

1. अन्तर-मुखी (Subjective) - यह अन्तर मुखी है। हम अपने मन के बारे में जान सकते हैं कि दूसरों के मन के बारे में। अत: यह नीम सत्य है।

2. निरंतरता और एकता (Continuity and unity) - मन में एकता तथा एकापता होती है। परन्तु पागलों,पशुओं तथा असाधारण (Abnormal) व्यक्तियों में इसका अभाव होता है।

(3) मनोविज्ञान चेतना का विज्ञान (Psychology as science of consciousness) :

सन् 1850 में मनोविज्ञान की परिभाषा चेतना के विज्ञान के तौर पर की गई। चेतना का अर्थ है 'स्थिति का ज्ञान', 'स्थिति का पूर्ण ज्ञान' या 'स्थिति के बारे में बहुत सीमा तक सचेत रहना' यहां चेतना मनुष्य के आंतरिक अनुभवों, विचारों और स्मृतियों इत्यादि का प्रतीक है।

आलोचना (Criticism) :

1. तुच्छ भाग (Negligible portion) - चेतना हमारे मन का बहुत तुच्छ (1/10) भाग है। मन के महान् खण्ड हैं अर्धचेतन और अचेत मन और यही व्यक्तित्व के विकास पर महान् प्रभाव डालते हैं। परन्तु यह परिभाषा अर्ध चेतन तथा अचेत क्रियाओं से सम्बन्ध नहीं रखती।

 

2. अवैज्ञानिक (Unscicntific) - हम अपनी मानसिक क्रियाओं के बारे में सचेत हो सकते हैं परन्तु हमें दूसरों की चेतन का ज्ञान नहीं होता। यह विधि आत्म दर्शन (Introspection से जो कि बहुत सीमा तक अन्तर मुखी तथा न्यूनतम वैज्ञानिक ढंग है, बहुत मिलती-जुलती है। अतः वर्तमान वैज्ञानिक युग में इसे माना नहीं जा सकता।

 

(4) मनोविज्ञान व्यवहार का विज्ञान (Psychology as science of behaviour) :

बीसवीं शताब्दी के आरम्भ में मनोविज्ञान के अनेक अर्थ बताये गये, जिनमें सबसे अधिक मान्यता इस अर्थ को दी गई है'मनोविज्ञान व्यवहार का विज्ञान है।' ऊतः मनोविज्ञान व्यवहार का अध्ययन करता है। तथा असाधारण, बच्चे तथा प्रौढ़ और मनुष्य तथा पशु का व्यवहार शामिल है।

 

 

कुछ विद्वानों की मनोविज्ञान की व्यवहार इसमें साधारणहैं- सम्बन्धी परिभाषाएं इस प्रकार

1. वाटसन की परिभाषा (Watson's definition) - 'मनोविज्ञान व्यवहार का धनात्मक विज्ञान है।

("Psychology is the positive science of behaviour.")

2. मन की परिभाषा (Munn's definition) - 'आधुनिक मनोविज्ञान का सम्बन्ध व्यवहार की वैज्ञानिक खोज से है।' (“Psychology today concerns itself with the scientific investigation of behaviour.")

3. मैक्डूगल की परिभाषा (McDougall's definition) - 'मनोविज्ञान आचरण एवं व्यवहार का यथार्थ विज्ञान है '

(“Psychology is the positive science of conduct and behaviour ")

4. पिल्सबरी की परिभाषा (Pillsbury's definition) - 'मनोविज्ञान की सबसे सन्तोषजनक परिभाषा, मानव व्यवहार के विज्ञान के रूप में की जा सकती है।' ("Psychology may be most satisfactorily defined as the science of human behaviour.")

5. क्रो एवं क़ो की परिभाषा (Definition by Crow and Crow) - 'मनोविज्ञान' मानव व्यवहार एवं मानव सम्बन्धों का अध्ययन है। ("Psychology is the study of human behaviour and human relationships.")

6. स्किनर का विचार (Skinner's view) - मनोविज्ञान व्यवहार तथा अनुभवों का विज्ञान है।'

("Psychology is the science of behaviour and experiences.")

7. गैरिसन एवं अन्य का विचार (View of Garrison and Others) - 'मनोविज्ञान का सम्बन्ध प्रत्यक्ष मानव व्यवहार से है।' ("Psychology is concerned with observable human behaviour ")

8. बोरिंग एवं अन्य का विचार (View Boring and Others) - मनोविज्ञान मानव प्रकृति का अध्ययन है।' (“Psychology is the study of human nature.")

प्राचीन काल से आधुनिक समय तक मनोविज्ञान की जीवन यात्रा का चित्र अंकित करते हुए वुडवर्थ (Woodworth) ने लिखा है- 'सबसे पहले मनोविज्ञान ने अपनी आत्मा का त्याग किया, फिर अपने मन का त्याग किया, इसके पश्चात् उसने चेतना का त्याग किया और अब वह व्यवहार के प्रकार को अपनाता है।" ("First,psychology lost its soul, then it lost its mind, then it lost its consciousness, it still has behaviour of sort.")

वुडवर्थ द्वारा दी गई परिभाषा (Definition by Woodworth) :

      प्रो० वुडवर्ध के शब्दों में, “मनोविज्ञान वातावरण के सम्बन्ध में व्यक्ति की क्रियाओं का विज्ञान है।"

(Psychology can be defined as "the science of the activities of the individual in relation to environment ") इस परिभाषा में बताये गये तकनीकी शब्दों की व्याख्या से इस परिभाषा को समझा जा सकता है

(1) विज्ञान (Science) :

                 मनोविज्ञान एक विज्ञान है। किसी ज्ञान के विधिवत अध्ययन को विज्ञान कहते हैं। केवल विषय-वस्तु (Subject-matter) के आधार पर किये गये अध्ययन को विज्ञान नहीं कहा जाता। वस्तुतः वैज्ञानिक विधि हो महत्त्वपूर्ण होती है। कहने का तात्पर्य यह कि विधि किसी विषय को विज्ञान बनाती है, केवल विषय-वस्तु से वह विज्ञान नहीं बनता। विज्ञान के अनिवार्य तत्त्व निम्नलिखित हैं-

1. वैज्ञानिक विधि (Scientific method) - विज्ञान में वैज्ञानिक विधि का प्रयोग होता है। वैज्ञानिक विधि

के मुख्य चरण इस प्रकार हैं-

(i) निरीक्षण (Observation) - सूक्ष्म एवं विस्तृत निरीक्षण वैज्ञानिक विधि का पहला चरण है। इस निरीक्षण के लिए सर्वोत्तम साधनों का प्रयोग करना होता है। साधनों की शुद्धता (Accuracy) को भी सुनिश्चित बनाना होता है।

(ii) निरीक्षण को रिकार्ड करना (Recording of observation) - निरीक्षण को सावधानी से रिकार्ड करना चाहिए। इसमें पूर्ण वस्तुनिष्ठता (Objectivity) का ध्यान रखना अत्यन्त आवश्यक है।

(iii) तथ्यों का वर्गीकरण (Classification of facts) - निरीक्षण को रिकार्ड करने के पश्चात एकत्रित सामग्री को उचित आधार पर संगठित करना चाहिए और उन्हें उचित वर्गों में बांटना चाहिए।

कार्ल पीयर्सन (Karl Pearson) के शब्दों में तथ्यों का वर्गीकरण, उनका क्रमिक ज्ञान और उनका पारस्परिक महत्त्व समझना या दर्शाना

विज्ञान का कार्य है। (“It is the function of science to classify facts, to know their order and to realise or to indicate their relative importance ")

(iv) विश्लेषण एवं सामान्यीकरण (Analysis and generalisation) - विज्ञान और वैज्ञानिक विधि में वर्गीकृत सामग्री का विश्लेषण करके उसका सामान्यीकरण किया जाता है। यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि सामान्यीकरण में कुछ सामान्य निष्कर्ष निकाले जाते हैं। इन सामान्य निष्कर्षो को कभी-कभी सामान्य नियम भी कहा जाता है जो सार्वभौमिक (Universal) रूप से सत्य होते हैं।

(v) प्रमाणीकरण (Vertification) - वैज्ञानिक विधि का अन्तिम चरण सामान्य या सार्वभौमिक नियमों का प्रमाणीकरण है अर्थात् प्रमाणों के आधार पर उनकी सत्यता को सिद्ध करना होता है। प्रमाणीकरण के बिना कोई भी नियम वैज्ञानिक नहीं बन सकता।

2. सत्यता (Factuality) - विज्ञान तथ्यों का अध्ययन है। यह सच्चे तथ्यों की खोज है।

3.सार्वभौमिकता (Universality) - वैज्ञानिक नियम सार्वभौमिक होते हैं।

4. प्रमाणिकता (Validity) - वैज्ञानिक नियम प्रमाणिक होते हैं। वह हर जगह और हर समय सत्य सिद्ध होते हैं। उनका कभी भी परीक्षण किया जा सकता है।

5. कार्य-कारण सम्बन्ध की खोज (Discovery of cause and effect relationship) – विज्ञान कार्य-कारण सम्बन्ध का अध्ययन करता है। इन सम्बन्धों के आधार पर वह सार्वभौमिक एवं प्रमाणिक नियमों का निर्माण करता है।

6. भविष्यवाणी (Prediction) - विज्ञान भविष्यवाणी करता है।

विज्ञान के उपर्युक्त अनिवार्य तत्त्वों के आधार पर कहा जा सकता है कि मनोविज्ञान भी एक विज्ञान है क्योंकि-

(1) मनोविज्ञान में वैज्ञानिक विधि (Scientific method) का प्रयोग होता है। इसमें व्यक्ति के व्यवहार का निरीक्षण करके उसे रिकार्ड किया जाता है और तथ्यों का वर्गीकरण, विश्लेषण, सामान्यीकरण तथा प्रमाणीकरण किया जाता है।

(ii) मनोविज्ञान तथ्यों (Facts) पर आधारित होता है।

(ii) मनोविज्ञान के सिद्धान्त सार्वभौमिक (Universal) होते हैं। वे हर समय और हर स्थान पर सत्य सिद्ध होते हैं।

(iv) मनोविज्ञान कार्य-कारण सम्बन्धों (Cause and effect relationship) की खोज करता है।

(v) मनोविज्ञान भविष्यवाणी (Predict) कर सकता है।

मनोविज्ञान स्वीकारात्मक (Positive) तथा यथार्थवादी (Empirical) विज्ञान है। यह स्वीकारात्मक है क्योंकि यह मन और व्यवहार के वास्तविक स्वरूप का अध्ययन करता है। यह यथार्थवादी है क्योंकि यह अन्य विज्ञानों की भांति तथ्यों को निरीक्षण-विधि का प्रयोग करता है।

(2) क्रियायें (Activities) : वुडवर्थ (Woodworth) ने अपनी परिभाषा में दूसरे तकनीकी शब्द 'क्रियाएं' (Activities) का प्रयोग किया है। 'क्रियाएं' शब्द का प्रयोग व्यापक अर्थों में किया गया है। जीवन के किसी भी कार्य को क्रिया कहा जा सकता है। 'क्रियाओं' में निम्नलिखित बातें सम्मिलित हैं-

1. शारीरिक या गतिक्रियायें (Physical and motor activities) - जैसे चलना, साईकल चलाना, खेलना कार चलाना, बर्तन धोना आदि।

2. मानसिक या बौद्धिक क्रियायें (Mental or intellectual activitics) - जैसे सीखना, याद करना, सोचना, निरीक्षण करना आदि।

3. भावात्मक क्रियायें (Emotional activitics) - जैसे हंसना, चिल्लाना, खुश होना, उदास होना, क्रुद्ध होना, ईर्ष्या करना आदि।

क्रियाओं को कई बार तीन वर्गों में रखा जाता है-ज्ञानात्मक क्रियायें, भावात्मक क्रियायें तथा कार्यात्मक क्रियायें। यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि कोई भी क्रिया वास्तव में केवल किसी एक वर्ग के साथ सम्बन्धित नहीं होती। मानसिक क्रिया उसी समय शारीरिक क्रिया भी हो सकती है। जैसे गणित का कोई प्रश्न सोचते हुए उंगलियों पर गिनती भी गिनी जाती है और कई व्यक्ति साथ-साथ पैंसिल भी चबाते रहते हैं। इसी प्रकार किसी वाद्य-यन्त्र (Musical instrument) के सीखने फुटबाल को किक लगाने, सीधी रेखा को देखने, क्रोध पर नियन्त्रण करने आदि क्रियाओं में मानसिक और शारीरिक दोनों प्रकार की क्रियायें निहित रहती हैं। हम कई बार अपने मस्तिष्क के

साथ-साथ अपने हाथों और अपनी उंगलियों के साथ भी सोचते हैं। फिर भी कई क्रियाओं में मस्तिष्क से अधिक मांसपेशियों का प्रयोग होता है।

(3) व्यक्ति (Individual) :

मनोविज्ञान व्यक्ति की क्रियाओं का ज्ञान है। मनोविज्ञान हर प्रकार के व्यक्तियों, बच्चों, किशोरों (Adolescents), पौड़ों (Adults), सामान्य व्यक्तियों, असामान्य व्यक्तियों (Abnormal persons),प्रतिभाशाली व्यक्तियो, कमजोर मानसिकता वाले व्यक्तियों तथा पशुओं का अध्ययन करता है।

(4) वातावरण (Environment) :

मनोविज्ञान वातावरण के सम्बन्ध में व्यक्ति की क्रियाओं का अध्ययन करता है। वातावरण में वे सभी स्थितियां सम्मिलित होती हैं जो व्यक्ति को गर्भावस्था से मृत्यु तक प्रभावित करती रहती हैं। वातावरण में भौतिक, सामाजिक, बौद्धिक, नैतिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक शक्तियों का समावेश रहता है। ये सभी शक्तियां व्यक्ति के व्यवहार, व्यक्तित्व तथा उसकी क्रियाओं को प्रभावित करती हैं।

(i) भौतिक वातावरण (Physical environment)- इसमें भोजन, तापमान, जलवायु, घर, स्कूल आदि सम्मिलित हैं।

(ii) बौद्धिक या मानसिक वातावरण (Intellectual or mental environment) - इसमें पुस्तकें,पुस्तकालय, प्रयोगशालायें, संग्रहालय, माता-पिता की बौद्धिक रुचियां, मनोरंजक कक्ष, मनोरंजनात्मक गठन आदि सम्मिलित होते हैं।

(iii) भावात्मक वातावरण (Emotional environment) - इसमें माता-पिता, मित्रों, रिश्तेदारों और अध्यापकों की भावात्मक प्रकृति सम्मिलित रहती है।

(iv) सामाजिक वातावरण (Social environment) - इसमें माता-पिता, परिवार के अन्य सदस्य, रिश्तेदार, मित्र, पड़ोसी, अध्यापक तथा समाज सम्मिलित हैं।

व्यक्ति और वातावरण में तीन प्रकार का सम्बन्ध होता है-

1. निर्भरता (Dependence) - व्यक्ति को अपने शारीरिक, बौद्धिक, भावात्मक, सामाजिक, सौन्दर्यात्मक एवं नैतिक विकास के लिये वातावरण पर निर्भर रहना पड़ता है।

2. भाग लेना (Participation) - व्यक्ति को वातावरण में भाग भी लेना पड़ता है। जिस प्रकार वह वातावरण में भाग लेता है, उसका प्रभाव उसकी शारीरिक, मानसिक और भावात्मक क्रियाओं पर पड़ता है। उसका वातावरण में भाग लेना उसके समायोजन (adjustment) को प्रभावित करता है।

वुडवर्थ (Woodworth) के कथनानुसार 'समायोजन सफलता की कुंजी है।" ("Adjustment is key to success.")

3. अन्तक्रिया (Interaction) - व्यक्ति और वातावरण में एक प्रकार की अन्तर्क्रिया चलती रहती है।

वातावरण व्यक्ति को प्रभावित करता है और व्यक्ति वातावरण को प्रभावित करता है।

 

मनोविज्ञान की सर्वोत्तम परिभाषा (Best Definition of Psychology) :

मनोविज्ञान की सर्वोत्तम परिभाषा इस प्रकार की जा सकती है-मनोविज्ञान व्यक्ति के व्यवहार और अनुभव का वैज्ञानिक अध्ययन है। (The best description of psychology is to define it as the scientific study of behaviour and experience of the individual ) व्यक्ति भले ही मनुष्य हो, पशु हो, बच्चा हो, किशोर हो, प्रौढ़ हो, पुरुष हो, नारी हो, सामान्य हो, प्रतिभा सम्पन्न हो, मन्द बुद्धि हो, अकेला हो या किसी ग्रुप में हो, उसका व्यवहार अच्छा हो या बुरा हो, वांच्छित हो या अवांच्छित हो, नैतिक हो या अनैतिक हो, सामाजिक हो या

असामाजिक हो-यह सब मनोविज्ञान के अध्ययन की विषय-वस्तु है।

विभिन्न परिभाषाओं का विश्लेषण (Analysis of Various Definitions):

यदि हम ऊपर दी गई परिभाषाओं का विश्लेषण करें तो हम निम्नलिखित निष्कर्ष पर पहुंचेंगे-

1 मनोविज्ञान को विज्ञान (Science) माना जाता है।

2. यह एक स्वीकारात्मक विज्ञान (Positive science) है।

3. यह प्राकृतिक विज्ञान (Natural Science) की शाखा है। यह पदार्थ का विज्ञान नहीं बल्कि व्यवहार का विज्ञान है। इसे रसायन विज्ञान या गणित की तरह, विज्ञान नहीं कहा जा सकता।

4. यह शारीरिक, मानसिक संवेगात्मक तथा सामाजिक व्यवहार का अध्ययन करता है। यह व्यक्ति की स्मृति, कल्पना, चिन्तन, सीखना, बुद्धि आदि ज्ञानात्मक क्रियाओं तथा मनो-शारीरिक (Psycho-physical) विशेषताओं का अध्ययन करता है।

5. यह मनुष्यों और पशुओं के व्यवहार का अध्ययन करता है।

 

(2) मनोविज्ञान का स्वरूप, क्षेत्र, विषय-वस्तु, समस्यायें एवं शाखायें

(Nature, Scope, Subject-Matter, Problems and Branches of Psychology)

हम इस निष्कर्ष पर पहुंच चुके हैं कि मनोविज्ञान वातावरण के सम्बन्ध में व्यक्ति के व्यवहार और अनुभव का वैज्ञानिक अध्ययन है। इससे सम्बन्धित सामग्री मनोविज्ञान की विषय-वस्तु है। व्यक्ति भले ही पुरुष हो, नारी हो. सामान्य हो, असामान्य हो, उसका व्यवहार नैतिक हो, अनैतिक हो, सामाजिक हो, असामाजिक हो- सब मनोविज्ञान की विषय-वस्तु के अन्तर्गत आते हैं। इस प्रकार व्यक्ति का समूचा जीवन मनोविज्ञान के अन्तर्गत आता है। अतः मनोविज्ञान का क्षेत्र बहुत ही व्यापक है।

                                                       विलियम जेम्ज़ (William James) के कथनानुसार 'आकाश और धरती की सभी वस्तुएं मनोविज्ञान के क्षेत्र के अन्तर्गत जाती हैं।' ("All the choir of heaven and furniture of earth come under the scope of psychology ") निम्नलिखित बातें मनोविज्ञान के व्यापक क्षेत्र पर प्रकाश डालती है-

1. मानसिक प्रक्रियायें (Mental processes) - सभी मानसिक प्रक्रियायें जैसे संवेदना, प्रत्यक्षीकरण,ध्यान, चिन्तन, सीखना, याद करना, कल्पना-मनोविज्ञान के क्षेत्र के अन्तर्गत आती हैं। प्रो० स्टाऊट (Prof. Stout) के कथनानुसार, 'मनुष्य के जीवन में होने वाली सभी क्रियायें मनोविज्ञान के क्षेत्र के अन्तर्गत आती हैं।' अपने मन में झांककर हम इन मानसिक क्रियाओं का निरीक्षण कर सकते हैं।

2. अभिव्यक्ति और व्यवहार (Expression & behaviour) - व्यक्ति के व्यवहार की अभिव्यक्ति से सम्बन्धित मानसिक क्रियाओं का अध्ययन मनोविज्ञान की विषय-वस्तु के अन्तर्गत आता है। किसी भी व्यक्ति की चमकती हुई मुस्कान को देखकर हम अनुमान लगा लेते हैं कि वह खुश होगा। निम्नलिखित तीनों प्रकार के व्यवहार या क्रियायें मनोविज्ञान के क्षेत्र के अन्तर्गत आती हैं-

(i) ज्ञानात्मक व्यवहार (Cognitive behaviour) - इसमें ज्ञानात्मक क्रियायें सम्मिलित हैं। इनका सम्बन्ध संवेदना, प्रत्यक्षीकरण (Perception), चेतनता (Awareness), चिन्तन (Thinking), ध्यान, स्मृति एवं कल्पना आदि के साथ होता है।

(ii) भावात्मक व्यवहार (Affective behaviour) - इसमें भावात्मक क्रियायें सम्मिलित होती हैं जैसे संवेग, अनुभूति एवं भावनायें

(iii) क्रियात्मक व्यवहार (Conative behaviour) - इसमें क्रियात्मक क्रियायें सम्मिलित हैं जैसे चलना,खेलना, दौड़ना एवं कूदना आदि।

मनोविज्ञान के कार्य-क्षेत्र में उपर्युक्त तीनों प्रकार के व्यवहार सम्मिलित हैं।

3. शारीरिक प्रक्रियायें (Physiological processes) - शिक्षा मनोविज्ञान में विभिन्न शारीरिक प्रक्रियाओं एवं परिवर्तनों का अध्ययन किया जाता है। विभिन्न मानसिक क्रियायें शारीरिक क्रियाओं और परिवर्तनों के साथ सम्बन्धित होती हैं। उदाहरणस्वरूप मानसिक संवेगों (Emotions) के कारण शरीर में भी कई प्रकार के परिवर्तन हो जाते हैंसंवेगों की तीव्रता में रक्त का दबाव, नाड़ी-गति और हृदय की धड़कन बढ़ जाती है। इसका प्रभाव पाचन क्रिया और नाड़ी-संस्थान (Nervous System) पर भी पड़ता है। प्रत्येक संवेगात्मक अनुभव में शारीरिक परिवर्तन अवश्य होते हैं। इन शारीरिक परिवर्तनों का अध्ययन भी मनोविज्ञान के अध्ययन-क्षेत्र के अन्तर्गत आता है।

4. मनोविज्ञान की शाखायें और कार्यक्षेत्र (Branches & Fields of Psychology) :

मनोविज्ञान का समूचा क्षेत्र और अध्ययन निम्नलिखित शाखाओं में बांटा गया है-

(1) सामान्य एवं असामान्य मनोविज्ञान (Normal and Abnormal Psychology) :

1. सामान्य मनोविज्ञान (Normal psychology) - सामान्य मनोविज्ञान सामान्य व्यक्तियों के व्यवहार तथा उनकी मानसिक प्रक्रियाओं के साथ सम्बन्धित है।

2. असामान्य मनोविज्ञान (Abnormal psychology) - असामान्य मनोविज्ञान उन असामान्य व्यक्तियों के व्यवहार का अध्ययन करता है जो मानसिक रूप से बीमार हैं। यह असामान्य व्यवहार-जैसे हिस्टीरिया, स्मृति का खो जाना, डर (Phobia), मानसिक तनाव, व्यक्तित्व का विखण्डन आदि के कारणों तथा उनकी प्रकृति का अध्ययन करता है और उनके रोकने का प्रयास करता है। असामान्य व्यवहार के उपचार के प्रयास किए जा रहे हैं।

(2) मानव मनोविज्ञान और पशु मनोविज्ञान (Human Psychology and Animal Psychology) :

1. मानव मनोविज्ञान (Human psychology) - मानव मनोविज्ञान केवल मनुष्यों के व्यवहार का अध्ययन करता है मानव मनोविज्ञान की कुछ शाखायें निम्नलिखित हैं

(i) बाल मनोविज्ञान (Child psychology) - यह बच्चे के शारीरिक, गत्यात्मक, बौद्धिक, भावात्मक,सामाजिक, नैतिक और सौन्दर्यात्मक विकास का अध्ययन करता है। यह बच्चे के व्यवहार तथा उसके व्यक्तित्व के विविध तत्त्वों का अध्ययन करता है।

(ii) किशोर मनोविज्ञान (Adolescent psychology) - किशोर मनोविज्ञान किशोरों के व्यवहार तथा उनके व्यक्तित्व के तत्त्वों का अध्ययन करता है। 12 या 13 वर्ष की आयु से लेकर 16 वर्ष की आयु तक के व्यक्तियों को किशोर कहा जाता है।

(iii) प्रौढ़ मनोविज्ञान (Adult psychology) - प्रौढ़ मनोविज्ञान प्रौढ़ों के व्यवहार का अध्ययन करता है। ऐसे व्यक्तियों का मानसिक स्तर तथा व्यवहार बच्चों से अधिक ऊंचा और परिपक्व होता है।

2. पशु मनोविज्ञान (Animal psychology) - पशु मनोविज्ञान पशुओं के व्यवहार का अध्ययन करता है कभी-कभी इसे तुलनात्मक-मनोविज्ञान (Comparative psychology) भी कहा जाता है क्योंकि इसमें मानव नोविज्ञान तथा पशु मनोविज्ञान का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया जाता है। मानव व्यवहार को समझने के लिए भी पशु मनोविज्ञान उपयोगी सिद्ध होता है।

(3) व्यक्तिगत मनोविज्ञान तथा सामाजिक मनोविज्ञान (Individual Psychology and Social Psychology) :

1. व्यक्तिगत मनोविज्ञान अथवा भिन्नात्मक मनोविज्ञान (Individual psychology or differential

psychology) - व्यक्तिगत मनोविज्ञान को व्यक्तिगत विभिन्नताओं का मनोविज्ञान भी कहा जाता है। यह विभिन्न व्यक्तियों में विद्यमान मानसिक, नैतिक आदि दृष्टिकोणों से अलग-अलग होते हैं। उनके दृष्टिकोण अलग होते हैं, उनकी रुचियाँ, जातियां, संस्कृति तथा पारिवारिक पृष्ठभूमि अलग होती है, उनकी शिक्षा, उनका आर्थिक स्तर, उनकी उपलब्धियां अलग होती हैं। वस्तुतः कोई भी व्यक्ति दूसरे से मेल नहीं खाता

2. सामाजिक मनोविज्ञान (Social psychology) - सामाजिक मनोविज्ञान सामाजिक स्थितियों के सम्बन्ध में मनुष्य के व्यवहार का अध्ययन करता है। यह विविध प्रकार की सामूहिक क्रियाओं के साथ सम्बन्धित है जैसेजनमत, भीड़, प्रचार, दृष्टिकोण, विश्वास, अन्तर्सामुदायिक, अन्तर्जातीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय संघर्ष एवं तनाव अतः सामाजिक मनोविज्ञान व्यक्ति का समाज के एक सदस्य के रूप में अध्ययन करता है।

(4) सैद्धान्तिक मनोविज्ञान तथा व्यावहारिक मनोविज्ञान (Pure Psychology and Applied Psychology) :

1. सैद्धान्तिक मनोविज्ञान (Pure psychology) - जब किसी विज्ञान का अध्ययन केवल ज्ञान-विकास के लिये किया जाता है तो उसे सैद्धान्तिक विज्ञान (Pure science) कहा जाता है। जब उसका अध्ययन मानवीय-उद्देश्यों के व्यावहारिक प्रयोग के लिये किया जाता है तब उसे व्यावहारिक अध्ययन कहते हैं। अतः सैद्धान्तिक मनोविज्ञान मनुष्यों और पशुओं की मानसिक प्रक्रियाओं तथा व्यवहारों का अध्ययन बुनियादी नियमों तथा सिद्धान्तों की खोज के लिये करता है।

2. व्यावहारिक मनोविज्ञान (Applied psychology) - व्यावहारिक मनोविज्ञान मनोविज्ञान के सिद्धान्तों को सामान्य व्यवहार में प्रयोग करता है ताकि उनकी व्यावहारिक उपयोगिता हो। व्यावहारिक मनोविज्ञान की कुछ शाखायें निम्नलिखित हैं

(i) औद्योगिक मनोविज्ञान (Industrial psychology) - औद्योगिक मनोविज्ञान कार्यकर्ताओं के चुनाव,प्रशिक्षण, नियुक्ति तथा कुशलता से सम्बन्धित औद्योगिक समस्याओं का अध्ययन करता है।

(ii) अपराध मनोविज्ञान (Criminal psychology) - यह अपराधियों के व्यवहार तथा उनकी कानूनी समस्याओं का अध्ययन करता है। 1

(iii) सेना मनोविज्ञान (Military psychology) - यह युद्ध तथा उसके साथ सम्बन्धित अन्य समस्याओं का अध्ययन करता है।

(iv) औपचारिक मनोविज्ञान (Clinical psychology) - औपचारिक मनोविज्ञान विभिन्न प्रकार की असामान्यताओं, मानसिक तनावों, मानसिक रोगों आदि का उपचार करता है। इस क्षेत्र के प्रवर्त्तकों में सिग्मण्ड फ्रायड (Sigmund Freud) का नाम प्रसिद्ध है। मानसिक रोगियों के उपचार के लिये फ्रायड तथा उसके अनुयायियों ने चार मुख्य विधियों को विकसित किया है-स्वप्न विश्लेषण, सम्मोहन (Hypnosis), शब्द-सहचर्य निर्धारण (Word association) और निर्मुक्त कथन (Free Talking)

(v) शिक्षा मनोविज्ञान (Educational psychology) - शिक्षा मनोविज्ञान सीखने की स्थिति में शिक्षार्थी के व्यवहार तथा सीखने की प्रक्रिया का अध्ययन करता है। शिक्षा मनोविज्ञान अध्यापक को अपने विद्यार्थियों अधिगम प्रक्रिया और सामाजिक सम्बन्धों को समझने तथा शिक्षण विधियों को सुधारने में सहायता करता है।

(5) मनोविज्ञान की अन्य शाखायें (Other Branches of Psychology) :

1. शारीरिक मनोविज्ञान (Physiological psychology) - यह ज्ञानेन्द्रियों, स्नायु संस्थान, प्रन्थियों तथा मांस पेशियों की रचनाओं तथा इनके कार्यों का अध्ययन करता है, क्योंकि इनका हमारे व्यवहार में महत्त्वपूर्ण स्थान होता है।

2. प्रयोगात्मक मनोविज्ञान (Experimental psychology) - यह वैज्ञानिक प्रयोगों द्वारा मानसिक प्रक्रियाओं तथा व्यवहारों का अध्ययन करता है। ये प्रयोग मुख्यतः विशिष्ट प्रयोगशालाओं या नियन्त्रित स्थितियों में किये जाते हैं।

3. पैरा मनोविज्ञान (Para psychology) - यह मनोविज्ञान नवीनतम विकास है। यह ज्ञानेन्द्रियों से परे की अनुभूतियों और टैलीपैथी आदि की समस्याओं का अध्ययन करता है। राजस्थान में पैरा मनोविज्ञान का एक विभाग स्थापित किया गया था।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

PART-02

शिक्षा मनोविज्ञान का अर्थ,क्षेत्र, स्वरूप एवं भूमिका/कार्य/उपयुक्तता तथा अध्यापक की भूमिका

(Meaning, Scope, Nature and Role/Functions/Relevance of Educational Psychology and Role of Teacher)

 (1) शिक्षा मनोविज्ञान का अर्थ एवं क्षेत्र

(Concept/Meaning and Scope of Educational Psychology)

शिक्षा मनोविज्ञान का अर्थ तथा परिभाषा (Concept/ Meaning and Definition of Educational Psychology) :

               शिक्षा मनोविज्ञान दो शब्दों से मिलकर बना है। पहला शब्द है 'शिक्षा' (Education) और दूसरा शब्द है 'मनोविज्ञान' (Psychology) मनोविज्ञान (Psychology) व्यवहार तथा अनुभव का ज्ञान है और शिक्षा (Education) व्यवहार की शुद्धि का नाम है। आधुनिक शिक्षा का उद्देश्य बच्चे के व्यक्तित्व का समरूप विकास (Harmonious development) है। अध्यापकों का कार्य ऐसी अवस्थाएं उत्पन्न करना है, जिनके द्वारा व्यक्तित्व का स्वतन्त्र तथा पूर्ण विकास हो सके और यही आधुनिक शिक्षा का उद्देश्य है परन्तु आधुनिक शिक्षा का यह अर्थ मनोविज्ञान के ज्ञान पर निर्भर है। अतः शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षा समस्याओं पर लागू होने वाला मनोविज्ञान है। शिक्षा मनोविज्ञान की और परिभाषायें अथवा दृष्टिकोण इस प्रकार हैं:

1. ट्रो के विचार (Trow's view) - 'शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षा संस्थानों के मनोवैज्ञानिक तत्त्वों का अध्ययन करता है।" ("Educational psychology is the study of the psychological aspects of educational situations.")

2. कोलिसनिक के विचार (Kolesnik's view) - 'शिक्षा क्षेत्र में मनोविज्ञान के सिद्धान्तों तथा उसकी उपलब्धियों को प्रयोग में लाना शिक्षा मनोविज्ञान है।' (“Educational psychology is the application of the findings and the theories of psychology in the field of education.").

3. स्किनर के विचार (Skinner's view) - 'शिक्षा मनोविज्ञान विज्ञान की वह शाखा है जो शिक्षण और सीखने के साथ सम्बन्धित है। इनके विचारानुसार शिक्षण और सीखना शिक्षा मनोविज्ञान का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है।'

("Educational psychology is that branch of science which deals with teaching and learning. According to him, teaching and learning are the most important problems, areas or fields of educational psychology.")

4. स्टीफन के विचार (Stephen's view) - 'शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षा की वृद्धि तथा विकास का विधिवत अध्ययन है। इनके विचारानुसार जो कुछ भी शिक्षा की वृद्धि तथा विकास के विधिवत अध्ययन के साथ सम्बन्धित है, उसे शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र में सम्मिलित किया जा सकता है।' (“Educational psychology is the systematic study of educational growth and development. According to him, whatever is concerned with systematic study of educational growth and development can be included in the scope of educational psychology.")

5. जुड के विचार (Judd's view) - 'शिक्षा मनोविज्ञान एक ऐसा विज्ञान है जो व्यक्तियों में हुये उन परिवर्तनों का उल्लेख और व्याख्या करता है जो विकास की विभिन्न अवस्थाओं में होते हैं।' ("Educational psychology may be defined as a science which describes and at the same time explains the changes that take place in the individuals as they pass through the various stages of

development or it deals with many conditions.")

6. को और क्रो के विचार (View of Crow and Crow) - 'शिक्षा मनोविज्ञान जन्म से वृद्धावस्था तक व्यक्ति के सीखने की अनुभूतियों की व्याख्या प्रस्तुत करता है।' ("Educational psychology describes and explains the learning experiences of an individual from birth through old age.")

7. पील के विचार (Peel's view point)'शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षा का विज्ञान है जो अध्यापक को अपने विद्यार्थियों के विकास तथा उनकी योग्यताओं के विस्तार और उनकी सीमाओं को समझने में सहायता प्रदान करता है। यह अध्यापक को अपने विद्यार्थियों के सीखने की प्रक्रियाओं तथा उनके सामाजिक सम्बन्धों को भी समझने में सहायता प्रदान करता है। पोल के विचारानुसार शिक्षा मनोविज्ञान व्यापक रूप से सीखने की प्रकृति, मानव व्यक्तित्व के विकास, व्यक्तियों की परस्पर भिन्नता और सामाजिक सम्बन्ध में व्यक्ति के अध्ययन के साथ सम्बन्धित है।'

("Educational psychology is the science of education that helps teacher to understand the development of his pupils, the range and limits of their capacities, the processes by which they learn and their social relationship……..Educational psychology broadly deals with the nature of learning, the growth of human personality, the differences between individuals and the study of the person in relation to society.")

8. सारे एवं टेलफोर्ड का विचार (View of Sawrey and Telford) - 'शिक्षा मनोविज्ञान का मुख्य सम्बन्ध सीखने से है। यह मनोविज्ञान का वह अंग है जो शिक्षा के मनोवैज्ञानिक पहलुओं की वैज्ञानिक खोज से विशेष रूप से सम्बन्धित है।' (“The major concern of educational psychology is learning. It is the field of psychology which is primarily concerned with the scientific investigation of the psychological aspects of education.")

9. नॉल एवं अन्य का विचार (View of Noll and Others) - 'शिक्षा मनोविज्ञान मुख्य रूप से शिक्षा की सामाजिक प्रक्रिया से परिवर्तित या निर्देशित होने वाले मानव व्यवहार के अध्ययन से सम्बन्धित है।'

("Educational psychology is concerned primarily with the study of human behaviour as it is changed or directed under the social process of education.")

10. एलिस को का विचार (View of Alice Crow) - 'शिक्षा मनोविज्ञान वैज्ञानिक विधि से प्राप्त किए जाने वाले मानव प्रतिक्रियाओं के उन सिद्धान्तों के प्रयोग को प्रस्तुत करता है, जो शिक्षण और अधिगम को प्रभावित करते हैं।' ("Educational psychology represents the application of scientifically derived principles of human reactions that affect teaching and learning.")

 

निष्कर्ष (Conclusion ) -

उपर्युक्त विचारधाराओं के आधार पर कहा जा सकता है कि शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षा स्थितियों के संदर्भ में शिक्षार्थी एवं अधिगम प्रक्रिया से सम्बन्धित है। (Educational psychology deals with the learner and the learning process in learning situations.")

शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र में छः मुख्य अवयव शामिल हैं-

1.शिक्षार्थी ( The learner) - 'शिक्षार्थी' शब्द से हमारा अर्थ है वे छात्र जो व्यक्तिगत या सामूहिक रूपकिक्षा समूह में समाविष्ट होते हैं, वह व्यक्ति जिसके लिए यह कार्यक्रम विद्यमान है या काम कर रहा है। इस क्षेत्र में शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षार्थी के निम्नलिखित पहलुओं का अध्ययन करता है-

(1) वृद्धि एवं विकास अर्थात् उसका शारीरिक, बौद्धिक, संवेगात्मक और सामाजिक विकास

(2) बुद्धि, रुझान और व्यक्तित्व

(3) परिवार, विद्यालय, समाज, राज्य, जैसे सामाजिक अभिकरणों का व्यक्तित्व पर प्रभाव।

(4) मानसिक स्वास्थ्य एवं समायोजन

(5) व्यक्तिगत भिन्नताएं।

2.अधिगम प्रक्रिया (The learning process) - 'अधिगम प्रक्रिया' से हमारा अर्थ है छात्रों के सीखते समय जो चलता रहता है। लिन्डमेन (Lindgren) के शब्दों में अधिगम प्रक्रिया वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा छात्र अपने व्यवहार में परिवर्तन लाते हैं, कार्य-प्रदर्शन में सुधार लाते हैं, अपने विचार को पुनः संगठित करते हैं या व्यवहार करने के नए ढंगों, नए प्रत्ययों एवं जानकारी की खोज करते हैं।" ("Learning process is the process by which pupils acquire changes in their behaviour, improve performance, reorganise their concepts and information.”)

इस क्षेत्र में शिक्षा मनोविज्ञान निम्नलिखित पहलुओं का अध्ययन करता है-

(1) अधिगम प्रक्रिया की प्रकृति जिसमें अधिगम के सिद्धान्त सम्मिलित हैं।

(2) प्रभावशाली अधिगम के नियम और विधियां

(3) अधिगम प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले कारक जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं-

() अभिप्रेरणा, () आदतें, () ध्यान एवं रुचि, () चिन्तन एवं तर्क, () समस्या समाधान और

सृजनशीलता, () स्मृति एवं विस्मृति की प्रक्रिया, () प्रशिक्षण का स्थान परिवर्तन, () कौशलों को सीखना,()

प्रत्यय-निर्माण और अभिवृत्तियां इस प्रकार शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र में ये सभी विषय शामिल हैं।

3. अधिगम स्थिति (The learning situation) - 'अधिगम स्थिति' से हमारा अर्थ है वे कारक जो अधिगम एवं अधिगम प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। अधिगम स्थिति में शिक्षा मनोविज्ञान निम्नलिखित का अध्ययन करता है-

(1) कक्षा प्रबंधन एवं अनुशासन

(2) प्रविधियां जिनमें कक्षा में अधिगम को सुविधापूर्ण बनाने वाली अभिप्रेरणात्मक प्रविधियां और सहायक साधन शामिल हैं।

(3) मूल्यांकन प्रविधियां एवं कार्य-विधियां जिनमें शिक्षा सांख्यिकी शामिल है।

(4) विशिष्ट बच्चों को पढ़ाने की विधियां जिनमें प्रतिभाशाली, पिछड़े हुए, अपराधी, समस्यात्मक और विकलांग (शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक और सामाजिक रूप से विकलांग) बच्चे शामिल हैं।

(5) निर्देशन एवं परामर्श

4. अधिगम अनुभव (Learning experiences) - इसमें छात्रों के परिपक्वता स्तर के अनुसार क्रियाएं और विषय-वस्तु प्रदान करना शामिल है।

5. शिक्षण स्थिति (Teaching situation) - शिक्षा मनोविज्ञान की प्रभावशीलता तभी सार्थक होती हैं।जब शिक्षण अधिगम स्थिति में इसकी विधिया और निष्कर्ष शैक्षिक कार्यविधियों का एक भाग बन जाते हैं।

6. अधिगम अनुभवों का मूल्यांकन (Evaluation of learning experiences) - हाल ही में, मनोविज्ञान के विषय-वस्तु में अधिगम अनुभवों के मूल्यांकन का महत्त्व बढ़ गया है।

 

 

शिक्षा मनोविज्ञान की समस्यायें या क्षेत्र (Problems or Areas of Educational Psychology) :

शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र (Scope) में निम्नलिखित समस्यायें शामिल हैं-

निम्नलिखित क्षेत्र या समस्याओं को शिक्षा मनोविज्ञान के कार्य-क्षेत्र में शामिल किया जा सकता है।

1. व्यवहार की समस्या (Problem of behaviour) - शिक्षा मनोविज्ञान सीखने की अवस्थाओं में शिष्य के व्यवहार का अध्ययन करता है। यह शिष्य के मनोवैज्ञानिक व्यवहार के साथ-साथ उसके शारीरिक व्यवहार का भी अध्ययन करता है। व्यवहार के मनोवैज्ञानिक आधार (1) प्रवृत्तियां, (2) संवेग,(3) मनोभाव, (4) सुझाव, (5) सहानुभूति,(6) अनुकरण तथा (7) खेल आदि हैं। व्यवहार के शारीरिक आधार हैं-स्नायु संस्थान तथा प्रन्थियाँ (Nervous system and glands) शिक्षा मनोविज्ञान व्यवहार के सभी मनोवैज्ञानिक तथा शारीरिक आधारों का अध्ययन करता है

2. व्यक्तिगत विभिन्नताओं की समस्या (Problem of individual differences) - शिक्षा मनोविज्ञान व्यक्तिगत विभिन्नताओं का अध्ययन करता है। कोई दो व्यक्ति समान नहीं होते। व्यक्ति शारीरिक और मनोवैज्ञानिक तौर पर एक-दूसरे से भिन्न होते हैं। व्यक्तिगत विभिन्नताओं के कारण हैं(1) योग्यताओं, (2) सम्भावनाओं,(3) रुचिर्यो,(4) मनोभावों,(5) आदतों, (6) लक्षणों, (7) आयु और (8) लिंग (Sex) आदि में अन्तर। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि व्यक्तिगत विभिन्नताएं प्रायः वंश और वातावरण ( Heredity and environment) की उपज होते हैं। अतः शिक्षा मनोविज्ञान इन सभी क्षेत्रों का अध्ययन करता है।

3. विकास की अवस्थाएं (Developmental stages) - शिक्षा मनोविज्ञान वृद्धि तथा विकास के स्वरूप और विभिन्न अवस्थाओं में शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक तथा सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाओं अर्थात् (1) शिशुकाल, (2) बचपन तथा (3) किशोर अवस्थाओं का अध्ययन करता है।

4. बच्चे का अध्ययन (Child's study) - बच्चा शिक्षा मनोविज्ञान का हृदय तथा शिखर है। शिक्षा मनोविज्ञान इस बात की पड़ताल करता है कि बच्चे के व्यवहार में किस तरह विभिन्न शुद्धियां की जा सकती हैं। वह यह भी देखता है कि बच्चों में कब और कैसे (1) शारीरिक, (2) सामाजिक, (3) संवेगात्मक तथा (4) मानसिक विकास होता है और कैसे विभिन्न प्रवृत्तियां प्रकट होती हैं।

5. अधिगम अथवा सीखना (Learning) - शिक्षा मनोविज्ञान सीखने की प्रक्रिया तथा कारणों, सीखने के सिद्धांतों तथा विधियों का अध्ययन भी करता है। (1) रुचि, (2) ध्यान, (3) अभिप्रेरणा, (4) स्मृति,(5) आदतों और (6) सीखने के परिवर्तन का अधिगम में महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। अतः ये सारे विषय शिक्षा मनोविज्ञान में सम्मिलित किये गये हैं।

6. व्यक्तित्व तथा वुद्धि (Personality and intelligence) - शिक्षा मनोविज्ञान व्यक्तित्व तथा बुद्धि के स्वरूप, विकास और मापन का अध्ययन भी करता है। यह समायोजन (Adjustment) की समस्या का अध्ययन भी करता है तथा विशेष तौर पर तीव्र बुद्धि, विकलांग, पेचीदा तथा कदाचारी बच्चों का।

7. मापन तथा मूल्यांकन (Measurement and evaluation) - मापन तथा मूल्यांकन शिक्षा मनोविज्ञान का एक और क्षेत्र है। यह हमें बुद्धि, व्यक्तित्व, रुचियों तथा प्राप्तियों आदि के मापन के लिए नये-नये ढंग देता है।यह शिक्षा सांख्यकी (Educational Statistics) है जो हमारी माप तथा मूल्यांकन में सहायता करती है। इसलिए शिक्षा सांख्यक्री को भी मनोविज्ञान के क्षेत्र में सम्मिलित किया गया है|

8. निर्देशन तथा परामर्श (Guidance and counselling) - केवल शिक्षा मनोविज्ञान में सफल अध्ययन के बाद ही अध्यापक अपने कर्त्तव्य का सफलतापूर्वक पालन कर सकता है। अध्यापक प्रत्येक अवस्था में बच्चों का निर्देशन करता है तथा उन्हें परामर्श देता है। रूसो (Rousseau) का विचार है कि बच्चा एक पुस्तक की तरह है,जिसके प्रत्येक पृष्ठ का अध्यापक को अध्ययन करना है। इस कथन का भाव यह है कि अध्यापक बच्चों को शैक्षिक,व्यावसायिक और मनोवैज्ञानिक निर्देशन के साथ-साथ परामर्श भी दे।

9. समूह गतिशीलता एवं समूह व्यवहार (Group dynamics and group behaviour) –

                                                                                                                                      शिक्षा मनोविज्ञान समूह गतिशीलता एवं समूह व्यवहार का कक्षा के कमरे में अध्ययन करता है। यह व्यक्ति के समूह महत्त्व एवं प्रभाव का अध्ययन करता है। यह इस बात का भी अध्ययन करता है कि व्यक्ति किस प्रकार समूह को प्रभावित करता है। यह इन बच्चों की शिक्षा में समूहों के योगदान की व्याख्या करता है। अतः अब स्कूलों में स्वस्थ समूहों का निर्माण एवं स्वस्थ वातावरण प्रदान करना अनिवार्य समझा जाता है

10. अनुसंधान (Research) –

                                         शिक्षा मनोविज्ञान अनुसन्धान एवं प्रयोगात्मकता की तकनीकों एवं विधियों का अध्ययन करता है। श्रेणी में किये गये अनुसंधान अध्ययनों के आधार पर हम छात्रों के व्यवहार की व्याख्या एवं भविष्यवाणी कर सकते हैं। अध्यापक अपनी वैयक्तिक संतुष्टि तथा कठिनाइयों को तुरन्त हल करने के लिए क्रियात्मक अनुसंधान कर सकता है।

               लिंडगरिन (Lindgren) ने शिक्षा मनोविज्ञान के विषय पर चर्चा करते हुए लिखा है कि शिक्षा के तीन केन्द्र बिन्दू हैं जिनके साथ मनोविज्ञान का सम्बन्ध है-

() शिक्षार्थी (Learner) - 'शिक्षार्थी' (Learner) शब्द से भाव विद्यार्थी है जो निजी या समूहिक तौर पर कक्षा के कमरे में एकत्र होते हैं। इससे भाव वे व्यक्ति भी हैं जिनके लिये शिक्षा कार्यक्रम का निर्माण हुआ है।कक्षा के कमरे में जो कुछ होता है उसके बहुत से भाग की व्याख्या कक्षा के बच्चों के व्यवहार तथा उनके विकास के अध्ययन द्वारा की जा सकती है। शिक्षार्थी या बच्चे का विकास उसके वंश तथा वातावरण, उसके शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक तथा सामाजिक व्यवहार, प्रवृत्तियों, मनोभावों तथा उद्गारों पर निर्भर होता है। अतः ये सभी तत्त्व, जिन पर शिष्य का व्यवहार निर्भर होता है, मनोविज्ञान के क्षेत्र में सम्मिलित किये गए हैं।

() सीखने की प्रक्रिया (Learning process) - सीखने की प्रक्रिया से भाव वे क्रियाएं हैं जो उस समय होती हैं जब शिक्षार्थी सीखते हैं। परन्तु शिक्षा मनोवैज्ञानिक इस बात में रुचि रखते हैं कि जब बच्चा सीखता है तो क्या होता है ? वह क्यों होता है ? अध्यापक उसे क्या सिखाना चाहते हैं ? वह जो कुछ अध्यापक उसे नहीं सिखाना चाहते क्यों सीखता है ? शिक्षा विधि विद्यार्थी की आंतरिक प्रेरणा, रुचियों, ध्यान, आदतों, स्मृति, बुद्धि तथा मानसिक स्वास्थ्य पर निर्भर करती है, इसलिये ये सभी तत्त्व शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र में शामिल कर लिये गए हैं।

() सीखने की परिस्थितियां (Learning situations) - सीखने की परिस्थितियों से भाव वे तत्त्व हैं जो शिक्षा तथा सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। इन तत्त्वों में से कुछ श्रेणी के कमरे में उपस्थित हो सकते हैं। अध्यापक शिक्षा अवस्थाओं का केन्द्रीय तत्त्व होता है।

शिक्षा मनोविज्ञान की विषय-सामग्री एवं क्षेत्र सम्बन्धी कुछ अन्य विद्वानों के विचार (Views of some other experts concerning the Subject-matter and Scope of Educational Psychology):

 

कुछ विद्वानों के विचार जो शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र और विषय-वस्तु पर प्रकाश डालते हैं, निम्नलिखित हैं

1. डगलस एवं हालैंड का विचार (Views of Douglas and Holland) - 'शिक्षा मनोविज्ञान की विषय-सामग्री शिक्षा की प्रक्रियाओं में भाग लेने वाले व्यक्ति की प्रकृति, मानसिक जीवन और व्यवहार है।'

("Subject matter of educational psychology is the nature, mental life, and the behavior of the individual undergoing the process of education.")

2. क्रो एवं क्रो का विचार (View of Crow and Crow) - 'शिक्षा मनोविज्ञान की विषय-सामग्री का सम्बन्ध सीखने को प्रभावित करने वाले कारकों के साथ है।' (“The subject-matter of educational psychology is concerned with the conditions that affect learning.")

3. गैरिसन एवं अन्यों का विचार (View of Garrison and Others) - 'शिक्षा मनोविज्ञान की विषय-सामग्री का नियोजन दो दृष्टिकोणों से किया जाता है-

(1) छात्रों के जीवन को समृद्ध और विकसित करना और

(2) शिक्षकों को अपने शिक्षण में गुणात्मक उन्नति करने में सहायता देने के लिए ज्ञान प्रदान करना '

(“The subject-matter of educational psychology is designed (1) to enhance and enrich the lives of learners, and (2) to furnish teachers with the knowledge and under-standing that will help them institue improvements in the quality of instruction.")

4. जी० लेस्टर एन्डरसन का विचार (View of G. Lester Anderson) - शिक्षा मनोविज्ञान की विषय-सामग्री को निम्नलिखित विशाल समूहों में रखा जा सकता है (The subject-matter of educational psychology can be placed under the following broad groupings) :

(1) विषय-प्रवेश, जिसमें शिक्षा मनोविज्ञान का स्वरूप और विधियां शामिल हैं। (An introductory

section including nature and methods of educational psychology.)

(2) व्यक्तित्व का स्वरूप एवं सामान्य और विकलांग बच्चों की समायोजन की समस्याएं। (The nature

of personality and adjustment problems of both normal and handicapped children.)

(3) बच्चों और किशोरों की वृद्धि तथा विकास। (The growth and development of children and adolescents.)

(4) सीखने का स्वरूप और इसके विशेष पक्ष यथा अभिप्रेरणा और सीखने का स्थानांतरण। (The nature of learning and its specialised aspects such as motivation and transfer of learning.)

(5) खोज और मूल्यांकन के साधन। (The tools of research and evaluation.)

 

शिक्षा मनोविज्ञान एक शैक्षणिक विषय के रूप में (Educational Psychology as an Academic Discipline) :

जी० लैसटर एण्डरसन० (G. Lester Anderson) के विचारानुसार शिक्षा मनोविज्ञान एक शैक्षणिक (Academic) विषय है। इस तथ्य के सम्बन्ध में निम्नलिखित सुझाव दिये गये हैं-

(1) शिक्षा मनोविज्ञान मानव व्यवहार पर केन्द्रित है।

(2) यह उन तथ्यों या सूचनाओं का समूह है जो निरीक्षण या अनुसन्धान के परिणामस्वरूप प्राप्त हुये हैं।

(3) ज्ञान का यह समूह सिद्धान्तों के रूप में परिणत किया जा सकता है।

(4) शिक्षा मनोविज्ञान ने एक ऐसी विधि को विकसित किया है जिसके द्वारा खोजें की जाती हैं, सूचनायें प्राप्त की जाती हैं, अनुमानित तथ्यों (hypothesis) का परीक्षण किया जाता है और सिद्धान्तों का प्रमाणीकरण किया जाता है।

(5) यह विधि शिक्षा सम्बन्धी समस्याओं के समाधान ढूंढने में अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होती है।

(6) यह सूचना, यह ज्ञान, ये सिद्धान्त, यह विधि-ये सब शिक्षा मनोविज्ञान का सार तत्त्व हैं और शिक्षा सिद्धान्त तथा शिक्षा अभ्यास को आधार प्रदान करते हैं।

 

(2) शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति अथवा स्वरूप

(Nature of Educational Psychology)

निम्नलिखित तथ्य शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति पर पर्याप्त रूप से प्रकाश डालते हैं-

1. स्वीकारात्मक विज्ञान (Positive Science) - शिक्षा मनोविज्ञान मानव व्यवहार का स्वीकारात्मक विज्ञान है। विज्ञान के रूप में यह मानव व्यवहार की व्याख्या करता है, उसे नियन्त्रित करता है और उसकी पूर्व सूचना देता है।

2. व्यावहारिक विज्ञान (Applicd Science) - शिक्षा मनोविज्ञान मनोविज्ञान की व्यावहारिक शाखाआ की एक शाखा है। यह सीखने की स्थितियों के सम्बन्ध में विद्यार्थी के व्यवहार का अध्ययन करता है।

3. प्रयोगात्मक विज्ञान (Practical science) - शिक्षा मनोविज्ञान उपयोगी है। इसकी प्रकृति प्रयोगात्मक है। अध्यापक शिक्षा मनोविज्ञान के ज्ञान का प्रत्येक स्तर और कदम पर प्रयोग करता है। शिक्षा मनोविज्ञान के बिना प्रभावशाली शिक्षण असम्भव है।

4. शिक्षात्मक विज्ञान (Educational science) - शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षात्मक विज्ञान है। शिक्षात्मक विज्ञान शिक्षार्थी के व्यवहार का शिक्षात्मक अवस्थाओं में अध्ययन करता है। यहां साधारण मनोविज्ञान व्यक्ति के व्यवहार को जीवन की विभिन्न स्थितियों में अध्ययन का विषय बनाता है, वहां शिक्षा मनोविज्ञान का सम्बन्ध केवल शिक्षात्मक क्षेत्र के साथ है।

5. सामाजिक विज्ञान (Social science) - शिक्षा मनोविज्ञान सामाजिक विज्ञान भी है। चाहे शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षार्थी के व्यवहार का अध्ययन शैक्षिक दृष्टिकोण से करता है फिर भी इसके परिणाम सभी शिक्षार्थियों पर सामाजिक अवस्थाओं में लागू किये जा सकते हैं। इस प्रकार शिक्षा मनोविज्ञान सामाजिक दृष्टि से भी उपयोगी है।

6. विशिष्ट विज्ञान (Specific science) - शिक्षा मनोविज्ञान व्यवहार के उन तथ्यों तथा सिद्धान्तों का अध्ययन करता है जिनका शिक्षण और सीखने की प्रक्रिया में विशेष महत्व और लाभ है।

7. विकासशील विज्ञान (Developing science) - शिक्षा मनोविज्ञान का विज्ञान इस क्षेत्र में लगातार हो रही खोजों के कारण विकसित हो रहा है। इस क्षेत्र में खोजों के कारण शिक्षार्थी, सीखने की प्रकारों और सीखने की अवस्थाओं सम्बन्धी नये तथ्य सामने रहे हैं। अतः शिक्षा मनोविज्ञान विकासशील विज्ञान है।

8. अकादमिक विषय (Academic discipline) - जी० लैसटर एण्डरसन (G. Lester Anderson) के अनुसार शिक्षा मनोविज्ञान एक अकादमिक विषय है। आरम्भ में यह शिक्षार्थी के व्यवहार पर केन्द्रित था इसके परिणाम सिद्धान्तों के रूप में साधारणीकृत किये गये। सूचना, ज्ञान, इसके सिद्धान्त और विधियां शिक्षा मनोविज्ञान का विषय है। शिक्षा मनोविज्ञान का अकादमिक विषय के रूप में निम्नलिखित प्रकार से उल्लेख किया जा सकता है।

(i) शिक्षार्थी का व्यवहार (Lcarner's behaviour) - शिक्षा मनोविज्ञान का प्रमुख केन्द्र शिक्षार्थी का व्यवहार है।

(ii) तथ्यों का समूह (Body of facts) - शिक्षा मनोविज्ञान उन तथ्यों अथवा सूचनाओं का समूह है जो निरीक्षण, प्रयोगात्मक या अनुसन्धानात्मक विधियों से प्राप्त हुये हैं।

(iii) सिद्धान्त (Principles) - शिक्षा मनोविज्ञान के परिणामों का सारांश सिद्धान्तों अथवा नियमों के रूप में दिया जा सकता है 1

(iv) विधि (Methodology) - शिक्षा मनोविज्ञान ने ऐसी विधियों को विकसित किया है जिनके द्वारा खोजें की जाती हैं, सूचनाएं प्राप्त की जाती हैं, प्राक्कथन (Hypothesis) का परीक्षण किया जाता है और सिद्धान्तों का प्रमाणीकरण किया जाता है।

(v) शिक्षा समस्याओं का समाधान (Solution of cducational problems) - शिक्षा मनोविज्ञान की विधियां शिक्षा सम्बन्धी समस्याओं का समाधान (हल) ढूंढने में बहुत उपयोगी सिद्ध होती हैं।

(vi) सार (Substance) - यह सूचना, यह ज्ञान, ये सिद्धान्त, ये विधियां शिक्षा मनोविज्ञान का सार तत्त्व (विषय-वस्तु) हैं और शिक्षा सिद्धान्त अथवा प्रयोग (Educational Theory or Practice) को आधार प्रदान करते हैं।

9. वैज्ञानिक दृष्टिकोण (Scientific approach) - शिक्षा मनोविज्ञान वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाता है। यह वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग करता है। अतः यह स्पष्ट है कि शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति वैज्ञानिक है (Educational psychology is a science and the nature of educational psychology is scientific.) परन्तु विज्ञान की प्रकृति तथा उसके विशिष्ट तत्त्व को जानने के लिये इस कथन का विश्लेषण करना चाहिए।

 

विज्ञान क्या है ? (What is Science ?)

ज्ञान की किसी भी शाखा का विधिवत अध्ययन विज्ञान है। कोई ज्ञान वैज्ञानिक तभी हो सकता है जब उसका अध्ययन विधिवत तथा सुगठित हो। यह बात विशेष रूप से ध्यान में रखनी चाहिए कि केवल विषय-सामग्री के आधार पर किसी अध्ययन को 'विज्ञान' नहीं कहा जा सकता। उसमें वैज्ञानिक विधि को अपनाना अधिक महत्त्वपूर्ण है। वस्तुतः विधि ही वैज्ञानिक होती है, विषय सामग्री वैज्ञानिक नहीं होती। अतः विज्ञान का विशिष्ट तत्त्व अध्ययन क्षेत्र की अपेक्षा विधि अधिक है।

 

वैज्ञानिक विधि क्या है ? (What is Scientific Method ?)

वैज्ञानिक विधि विधिपूर्वक (Systematic) होती है और सीमित अध्ययन-क्षेत्र में इसका प्रयोग किया जाता है। इस विधि में साहस, धैर्य, वस्तुपरकता (Objectivity) तथा रचनात्मक कल्पना की आवश्यकता है। वैज्ञानिक विधि के मुख्य चरण निम्नलिखित हैं-

1. निरीक्षण (Observation) - सूक्ष्म और विस्तृत निरीक्षण वैज्ञानिक विधि का प्रथम चरण है। इस निरीक्षण के लिये सर्वोत्तम साधन अपनाये जाते हैं।

2. निरीक्षण को रिकार्ड करना (Recording of the observation) - निरीक्षण को सावधानी से रिकार्ड करना चाहिए। इसमें पूर्ण वस्तुपरकता (Objectivity) की आवश्यकता है।

3. तथ्यों का वर्गीकरण (Classification of facts) - वैज्ञानिक विधि का तीसरा चरण यह है कि निरीक्षण को रिकार्ड करने के पश्चात् इकट्ठी की गई सामग्री को तर्कपूर्ण आधार पर संगठित करके उसका जाये कार्ल पीयर्सन (Karl Pearson) के कथनानुसार तथ्यों का वर्गीकरण करना, उनके क्रम का ज्ञान रखना और उनके सम्बन्धित महत्त्व को समझना विज्ञान का मुख्य कार्य है।

4. विश्लेषण और सामान्यीकरण (Analysis and generalisation) - वर्गीकृत तथ्यों का विश्लेषण तथा सामान्यीकरण वैज्ञानिक विधि का चौथा चरण है। इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि सामान्यीकरण करते समय कुछ सामान्य निष्कर्ष निकाले जाते हैं। इन निष्कर्षो को कुछ समय तक सार्वभौमिक नियम (Universal Laws) कहा जाता है।

5. प्रमाणीकरण (Verification) - वैज्ञानिक विधि के अन्तिम चरण में उन निष्कर्षो या सार्वभौमिक नियमों की सत्यता को निश्चित करने के लिये उनका प्रमाणीकरण किया जाता है।

 

 

 

 

विज्ञान के आवश्यक तत्त्व (Essential Elements of Science) -

1. वैज्ञानिक विधि (Scientific method) - विज्ञान में वैज्ञानिक विधि का प्रयोग किया जाता

2. तथ्यात्मकता (Factuality) - तथ्यों का अध्ययन ही विज्ञान है। विज्ञान सच्चे तथ्यों की खोज करता है।

3. सार्वभौमिकता (Universality) - वैज्ञानिक नियम सार्वभौमिक होते हैं

4. प्रमाणिकता (Validity) - वैज्ञानिक नियम प्रमाणित होते हैं। ये सभी समयों तथा सभी स्थानों में

प्रमाणित होते हैं। ये हमेशा सत्य सिद्ध होते हैं। इनका कभी भी परीक्षण किया जा सकता है।

5. कारण प्रभाव सम्बन्ध की खोज (Discovery of cause and effect relationship) – विज्ञान कारण और प्रभाव के सम्बन्ध का अध्ययन करता है। अपनी संकलित सामग्री में भी वह कारण प्रभाव सम्बन्धों की खोज करता है। इन्हीं सम्बन्धों के आधार पर यह सार्वभौमिक तथा ठोस नियमों का निर्माण करता है।

6. भविष्यवाणी (Prediction) - विज्ञान भविष्यवाणी करता है।

 

शिक्षा मनोविज्ञान विज्ञान के रूप में (Educational Psychology as a Science) :

विज्ञान के उपर्युक्त छः तत्त्वों के आधार पर कहा जा सकता है कि शिक्षा मनोविज्ञान एक विज्ञान है क्योंकि उसमें उपर्युक्त सभी तत्त्व विद्यमान हैं।

1. शिक्षा मनोविज्ञान वैज्ञानिक विधि का प्रयोग करता है (Educational psychology uses the scientific method) - शिक्षा मनोविज्ञान वैज्ञानिक साधनों का प्रयोग करता है जैसे निरीक्षण, प्रयोगीकरण, विवरण, प्रश्नावली, साक्षात्कार (Inverview) तथा प्रोजैक्ट विधियां। शिक्षा मनोविज्ञान के अधिकांश क्षेत्रों में प्रयोगात्मक विधि का प्रयोग व्यापक रूप से किया जाता है। शिक्षा मनोविज्ञान में अधिकांश तथ्यों को प्रमाणिक सिद्ध करने के लिये प्रयोग किये जाते हैं। इन प्रयोगों में व्यक्ति को मनोवैज्ञानिक रूप से नियन्त्रित वातावरण में रखकर उसके व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। अतः मनोविज्ञान एक विधिवत विज्ञान है क्योंकि इसकी प्रक्रियायें सुगठित होती हैं। इसकी प्रक्रियायें कम खर्चीली तथा उनमें अनुमानित-कार्य बहुत कम होता है।

2. शिक्षा मनोविज्ञान निरीक्षण और तथ्यों पर आधारित होता है (Educational psychology is empirical and factual) - विज्ञान के रूप में शिक्षा मनोविज्ञान निरीक्षण तथा तथ्यों पर आधारित है। यह वास्तविक खोजों पर आधारित है। इसके निष्कर्ष वस्तुपरक तथा निष्पक्ष होते हैं। यह सीखने की स्थिति में शिक्षार्थी के व्यवहार की व्याख्या करके सामान्य नियम खोजने का प्रयास करता है। I

3. शिक्षा मनोविज्ञान के सिद्धान्त सार्वभौमिक होते हैं (Principles of educational psychology are universal) - शिक्षा मनोविज्ञान के सिद्धान्त एक ही प्रकार की स्थितियों में हर जगह और हर समय सत्य सिद्ध होते हैं। यही कारण है कि रूसी शिक्षा मनोवैज्ञानिकों द्वारा रूसी बच्चों पर किया गया अध्ययन विश्व के किसी भी भाग के बच्चों पर सत्य सिद्ध होता है। यह तो ठीक है कि एक देश के बच्चे दूसरे देश के बच्चों से भिन्न होते हैं परन्तु एक ही प्रकार की स्थितियों के आधार पर सामान्य सिद्धान्तों की सार्वभौमिकता सिद्ध की जा सकती है। उदाहरणस्वरूप यह एक सामान्य नियम है कि सीखना व्यक्तिगत तत्त्वों (जैसे परिपक्वता, तत्परता, योग्यता, प्रेरणा, व्यक्तित्व की विशेषताओं), काम (Task) के तत्त्वों (जैसे काम की लम्बाई, काम की सार्थकता, काम की कठिनता, काम की सुखद अथवा दुखद अनुभूति) और विधि के तत्त्वों (जैसे सम्पूर्ण एवं आंशिक विधि, अन्तराल-विधि (Spaced Method) एवं अन्तराल-रहित-विधि (Unspaced Method), वाचन-विधि, बुद्धिपूर्ण तथा रटन्त विधि आदि) से प्रभावित होता है। इस सिद्धान्त की सार्वभौमिकता प्रमाणित हो चुकी है।

4. शिक्षा मनोविज्ञान के सिद्धान्त पुष्ट हैं (The principles of educational psychology are valid) - शिक्षा मनोविज्ञान के द्वारा पूर्ण पुष्टिकरण हो चुका है। इन सिद्धान्तों की प्रमाणिकता का कहीं भी परीक्षण किया जा सकता है। उदाहरणस्वरूप यह एक सामान्य नियम है कि अपराधपूर्ण व्यवहार हताश की उपज है और हताश के कारणों की खोज करने से इस  दोष का उपचार किया जा सकता है। यह सामान्य सिद्धान्त विश्व के किसी भी भाग में सत्य सिद्ध होगा।

5. शिक्षा मनोविज्ञान कारण-प्रभाव सिद्धान्त को परिभाषित करता है (Educational psychology delines cause and effect relationship) - शिक्षा मनोविज्ञान प्रतिभाशाली, पिछड़े हुये, अपराधी, विकलांग (handicapped) तथा सामान्य विद्यार्थी के व्यवहार का अध्ययन करके सबसे पहले उनके कारण ढूंढता है। यह कारण और प्रभाव के सम्बन्ध को परिभाषित करता है और इसी ज्ञान के आधार पर यह विद्यार्थी के व्यवहार का विश्लेषण करता है।  इससे यह जानना सम्भव हो जाता है कि विद्यार्थी कोई विशेष व्यवहार कब और क्यों करता है ?

6. शिक्षा मनोविज्ञान भविष्यवाणी कर सकता है (Educational psychology can predict) -विद्यार्थियों के व्यवहार के बारे में कारण और प्रभाव का सम्बन्ध स्थापित करने के पश्चात् शिक्षा मनोविज्ञान के लिये अन्य विद्यार्थियों के व्यवहार के बारे में भविष्यवाणी करना सम्भव हो जाता है। यह विद्यार्थियों के भावी विकास के बारे में भविष्यवाणी कर सकता है। जिन परिवारों में माता-पिता का नैतिक चरित्र निम्न स्तर का हो, या माता-पिता एक दूसरे के साथ निरन्तर लड़ते-झगड़ते रहते हों, या जिन परिवारों के युवक कोई काम नहीं करते बल्कि लड़कियों के पीछे घूमते रहते हैं या अवांछित लैंगिक क्रियाओं में लिप्त रहते हैं उनके बारे में यह भविष्यवाणी की जा सकती है कि उनके बच्चों में सामान्य चरित्र विकसित नहीं होगा। यह भविष्यवाणी अधिकांश हालतों में सत्य सिद्ध होती है। इसी प्रकार बच्चे की बुद्धि, अभिरुचियों, रुचियों तथा बौद्धिक योग्यताओं का विश्लेषण करके उसकी भावी शिक्षा तथा उसके व्यावसायिक जीवन की पूर्व सूचना दी जा सकती है।

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि शिक्षा मनोविज्ञान विद्यार्थी के व्यवहार का व्यावहारिक तथा स्वीकारात्मक विज्ञान है। शिक्षा मनोविज्ञान की विषय-सामग्री अत्यन्त सूक्ष्म, जटिल तथा विविधतापूर्ण है। यह ठीक है कि शिक्षा मनोविज्ञान उतनी विशुद्धता तथा प्रमाणिकता का दावा तो नहीं कर सकता जितनी प्राकृतिक क्रियाओं का अध्ययन करने वाले विज्ञान में होती है परन्तु विधियों तथा उपकरणों में हो रहे नवीनतम विकासों के कारण शिक्षा मनोविज्ञान की विशुद्धता तथा प्रमाणिकता निरन्तर बढ़ रही है और आशा की जा सकती है कि यह भविष्य में निरन्तर बढ़ती रहेगी।

 

(3) शिक्षा मनोविज्ञान तथा साधारण मनोविज्ञान में अन्तर

(Difference Between Educational Psychology and General Psychology)

शिक्षा मनोविज्ञान के स्वरूप तथा क्षेत्र का अध्ययन शिक्षा मनोविज्ञान तथा साधारण मनोविज्ञान के अन्तर के प्रकाश में भी किया जा सकता है। जन-साधारण के लिए शिक्षा मनोविज्ञान साधारण मनोविज्ञान के नियमों तथा सिद्धांतों को शिक्षा पर लागू करना है परन्तु यह एक संकीर्ण धारणा है। शिक्षा मनोविज्ञान तथा साधारण मनोविज्ञान में संक्षिप्त रूप से निम्नलिखित अन्तर हैं-

1. व्यावहारिकता (Application) – शिक्षा मनोविज्ञान साधारण मनोविज्ञान के सिद्धान्तों को शिक्षा पर लागू करना नहीं बल्कि यह प्रयोगात्मकता के साथ साधारण मनोविज्ञान के सिद्धान्तों को लागू करना है, परन्तु साधारण मनोविज्ञान साधारण नियमों तथा सिद्धान्तों से सम्बन्धित है।

2. शैक्षणिक बनाम साधारण वातावरण (Educational versus general environment) – शिक्षा मनोविज्ञान बच्चे की शैक्षणिक वातावरण से सम्बन्धित क्रियाओं से सम्बन्ध रखता है, परन्तु साधारण मनोविज्ञान बच्चे की साधारण वातावरण से सम्बन्धित क्रियाओं की चर्चा करता है।

3. व्यावसायिक बनाम अकादमिक दृष्टिकोण (Professional versus academic outlook) - शिक्षा मनोवैज्ञानिक का दृष्टिकोण व्यावसायिक है परन्तु साधारण मनोवैज्ञानिक का अकादमिक

4. स्वभाव बनाम परिवर्तन (Nature versus changes) - शिक्षा मनोविज्ञान का सम्बन्ध बच्चे के स्वभाव में परिवर्तनों के साथ है परन्तु साधारण मनोविज्ञान का बच्चे के स्वभाव के साथ।

5. आशय (Implications) - शिक्षा मनोविज्ञान साधारण मनोविज्ञान के बनाये नियमों के आशय से सम्बन्ध रखता है परन्तु साधारण मनोविज्ञान साधारण नियमों का संग्रह है।

6. मनुष्य और पशु (Human beings and animals) शिक्षा मनोविज्ञान मनुष्य मात्र का अध्ययन करता है परन्तु साधारण मनोविज्ञान मनुष्यों और पशुओं का भी अध्ययन करता है।

7. बल (Emphasis) - शिक्षा मनोविज्ञान में सीखने की विधि पर बल दिया जाता है परन्तु साधारण मनोविज्ञान में व्यवहार के दूसरे पहलुओं पर भी ज़ोर दिया जाता है।

शिक्षा मनोविज्ञान के उद्देश्य तथा लक्ष्य हैं

शिक्षा मनोविज्ञान के उद्देश्यों और लक्ष्यों को शिक्षा दर्शन के सम्बन्ध में समझा जा सकता है।

स्किनर (Skinner) का संकेत है कि शिक्षा दर्शन बुनियादी तौर पर "क्या और क्यों" का उत्तर देता है परन्तु "कैसे और कब" का उत्तर शिक्षा मनोविज्ञान देता है। उदाहरण के तौर पर मानवीय जीवन का क्या अर्थ है ? संसार क्या है ? ज्ञान क्या है ? शिक्षा के क्या उद्देश्य हैं ? हम क्या पढ़ायें ? हम क्यों पढ़ाएं ? ये सब क्या और क्यों के प्रश्नों का सम्बन्ध शिक्षा दर्शन के साथ है। दूसरी ओर मानवीय जीवन और संसार के अर्थों को कैसे सिखाया जाये तथा उनकी कैसे व्याख्या की जाये ? पढना किस समय उचित है ? शिक्षा के उद्देश्य कैसे प्राप्त किए जाएं ? किसी विषय की पढ़ाई कब शुरू करनी चाहिए ? इन सब प्रश्नों का उत्तर शिक्षा मनोविज्ञान देता है।

       दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि शिक्षा मनोविज्ञान के कुछ उद्देश्य तथा लक्ष्य इस प्रकार हैं-

(1) शिक्षार्थी को समझना (To understand the learner)

(2) अधिगम प्रक्रिया को समझना (To understand the learning process) 1

(3) उस विधि को समझना जिसके द्वारा अपने कार्यक्रमों को अध्यापक सुगमता से चला सकें (To understand and explain the manner in which these processes may be facilitated by the teacher) |

(4) रुचियों, अभिरुचियों, विकास की अवस्थाओं तथा शिष्यों के मानसिक स्तर के अनुसार उचित शिक्षा परिस्थितियां नियत करने में अध्यापक की सहायता करना (To help the teacher to set up appropriate learning situations according to interests, aptitudes, developmental stages and mental level of the pupils) |

(5) अध्यापक की निर्देशन देने की योजना बनाने, संगठित करने या कार्यक्रमों के लिए निर्देशन करने में सहायता करना (To help the teacher in defining, planning and organising or providing guidance programmes) |

(6) मूल्य निर्धारण तकनीकों की योजना बनाने तथा विद्यार्थियों की रुचि, अभिरुचि, प्राप्ति, व्यक्तित्व और बुद्धि को निर्धारण करने में अध्यापक की सहायता करना (To help the teacher in planning out the proper evaluation techniques and to make an assessment of interests, aptitudes, achievements, personality and intelligence of the pupils) !

संक्षिप्त रूप से कहा जा सकता है कि शिक्षा मनोविज्ञान के उद्देश्य तथा लक्ष्य हैंव्यक्तित्व का अच्छे से अच्छा विकास तथा निरन्तर शिक्षा विकास में वृद्धि (Development of wholesome personality and continuous educational development)

 

जी० लैस्टर एन्डरसन का विचार (View of G. Lester Anderson) :

जी० लैस्टर एन्डरसन ने शिक्षा मनोविज्ञान के उद्देश्यों को दो भागों में विभाजित किया है-

(1)    सामान्य उद्देश्य (General Aim) - 'शिक्षा मनोविज्ञान का सामान्य उद्देश्य संगठित तथ्यों और सामान्य नियमों का एक ऐसा संग्रह प्रदान करना है, जिसकी सहायता से शिक्षक सांस्कृतिक एवं व्यावसायिक लक्ष्यों को अधिक से अधिक प्राप्त कर सकें '

(2)    (“The general aim of educational psychology is to provide a body of organized facts and generalizations that will enable the teacher to realize increasingly both cultural and professional objectives." - G. Laster Anderson)

(2) विशिष्ट उद्देश्य (Specific Aim) - जी० लैस्टर एन्डरसन ने शिक्षा मनोविज्ञान के अप्रलिखित विशिष्ट उद्देश्य बताए हैं-

(1) शिक्षक को इस बात की जानकारी देना कि बाल्क किस सीमा तक सीख सकता है, उसके सामाजिक व्यवहार को कहां तक सुधारा जा सकता है तथा व्यक्तित्व समायोजन में कहा तक सफलता मिल सकती है।

(2) बालकों के वांछनीय व्यवहार के अनुरूप शिक्षा के स्तरों और उद्देश्यों को निश्चित करने में सहायता देना।

(3) बालकों के प्रति निष्पक्ष और महानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण का विकास करने में सहायता देना

(4) सामाजिक सम्बन्धों के स्वरूप और महत्त्व को अधिक अच्छी प्रकार समझने में सहायता देना

(5) शिक्षण की समस्याओं का समाधान करने के लिए प्रयोग किए जाने वाले तथ्यों और सिद्धान्तों का ज्ञान प्रदान करना इसके अन्तर्गत उपयुक्त पाठ्यक्रम, शिक्षण विधि, शिक्षण सामग्री का चुनाव आवश्यकतानुसार करने में सहायता देना आदि आते हैं।

(6) शिक्षक को अपने और दूसरों के शिक्षण के परिणामों को जानने में सहायता देना।

(7) शिक्षा सम्बन्धी समस्याओं के विषय में मनोवैज्ञानिक ढंग से विचार करने में सहायता देना।

(S) शिक्षकों को छात्रों के व्यवहार की व्याख्या करने के लिए आवश्यक तथ्य और सिद्धान्त प्रदान करना

(9) शिक्षकों को प्रगतिशील शिक्षण विधियों, निर्देशन कार्यक्रमों एवं विद्यालय संगठन और प्रशासन के स्वरूपों को निश्चित करने में सहायता प्रदान करना।

 

कैली का दृष्टिकोण (View of Kelley) -

कैली ने शिक्षा मनोविज्ञान के निम्नलिखित उद्देश्य बताए हैं-

(1) विद्यार्थी के स्वभाव का ज्ञान प्रदान करना।

(2) विद्यार्थी की वृद्धि और विकास का ज्ञान प्रदान करना

(3) विद्यार्थी को अपने वातावरण से समायोजन स्थापित करने में सहायता देना।

(4) शिक्षा के स्वरूप, उद्देश्यों और प्रयोजनों से परिचित कराना।

(5) सीखने और सिखाने के सिद्धान्तों और विधियों से परिचित कराना।

(6) संवेगों के नियंत्रण और शैक्षिक महत्त्व का अध्ययन करना।

(7) चरित्र-निर्माण की विधियों और सिद्धान्तों से परिचित कराना।

(8) स्कूल में पढ़ाये जाने वाले विषयों में विद्यार्थियों की योग्यताओं का मापन करने की विधियों में प्रशिक्षण देना

(9) शिक्षा मनोविज्ञान के तथ्यों और सिद्धान्तों की जानकारी के लिए प्रयोग की जाने वाली वैज्ञानिक विधियों का ज्ञान प्रदान करना।

(5) शिक्षा तथा शिक्षा मनोविज्ञान में अन्तर

(Difference Between Education and Educational Psychology)

1. व्यापक बनाम सीमित क्षेत्र (Wider versus limited scope) - शिक्षा का क्षेत्र व्यापक है परन्तु शिक्षा मनोविज्ञान का क्षेत्र सीमित है।

2. साध्य बनाम साधन (End versus means) - शिक्षा साध्य है, जबकि शिक्षा मनोविज्ञान साध्य तक जाने का साधन है।

3. संश्लेषणात्मक बनाम विश्लेषणात्मक (Synthetical versus analytical) - शिक्षा का रूप संश्लेषणात्मक है परन्तु शिक्षा मनोविज्ञान का स्वरूप विश्लेषणात्मक है।

4. शिक्षा हमारे जीवन के उद्देश्यों, आदर्शों एवं मूल्यों से सम्बन्धित है। शिक्षा मनोविज्ञान इन उद्देश्यों, आदर्शों तथा मूल्यों को प्राप्त करने में सहायता देता है।

 

 

 

6) शिक्षा मनोविज्ञान के कार्य एवं महत्त्व

(Functions and Importance/Significance or Relevance of Educational Psychology)

अथवा

मनोविज्ञान का शिक्षा के क्षेत्र में योगदान

(Contribution of Psychology in the Field of Education i.e., Theory and Practice)

अथवा

मनोविज्ञान तथा इसका शिक्षा के साथ सम्बन्ध

(Psychology and its Relation to Education)

शिक्षा तथा मनोविज्ञान ज्ञान की दो स्पष्ट शाखाएं हैं परन्तु इन दोनों का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है। आधुनिक शिक्षा का आधार मनोविज्ञान है। बच्चे को उसकी रुचियों, रुझानों, सम्भावनाओं तथा व्यक्तित्व का ध्यानपूर्वक अध्ययन करके शिक्षा दी जाती है। आज शिक्षा तथा मनोविज्ञान एक-दूसरे के पूरक हैं। ड्रीवर (Drever) का मत है कि शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षा का एक आवश्यक तत्त्व है। (Educational psychology is an essential element of education.) इसकी सहायता के बिना शिक्षा की गुत्थी सुलझाई नहीं जा सकती। शिक्षा तथा मनोविज्ञान दोनों का सम्बन्ध व्यवहार के साथ है। मनोविज्ञान की खोजों की शिक्षा के दूसरे पहलुओं पर गहरी छाप

है।

1. मनोविज्ञान तथा शिक्षा के उद्देश्य (Psychology and aims of education) -

                                  शिक्षा मनोविज्ञान ही अध्यापक को इस योग्य बनाने में सहायता देता है कि वह शिक्षा से सम्बन्धित उद्देश्य तथा लक्ष्य प्राप्त करे। यह उसकी शिक्षा की गुणवत्ता (Quality) के विकास में सहायता करता है और उसे बच्चे के विचारों, रुझानों, व्यक्तित्व तथा बुद्धि को समझने की योग्यता तथा सूझ-बूझ देता है। यह योग्यता तथा सूझ-बूझ अध्यापक को इस योग्य बनाती है कि वह वांछित लक्ष्य प्राप्त करने के लिए पढ़ाने के साधनों में परिवर्तन ला सके।

2. मनोविज्ञान तथा पाठ्यक्रम (Psychology and curriculum) -  

                                                                          मनोविज्ञान पाठ्य सहगामी क्रियाओं जैसे खेल, सैर, प्रदर्शनी, नाटक, मनोरंजन, कार्यक्रम, फिल्मी-शो, वाद-विवाद, उच्चारण प्रतियोगिता, कवि सम्मेलन, ग्रुप विचार-विनिमय तथा स्कूल में दूसरी शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक सरगर्मियों इत्यादि पर ज़ोर देकर नए दृष्टिकोण प्रदान करता है। आज पाठ्य सहगामी क्रियाओं को शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण अंग समझा जाता है क्योंकि ये संवेगों के सुधारने तथा व्यक्तित्व के विकास का महान् माध्यम हैं। अतः यह सुझाव दिया जाता है कि पाठ्यक्रम लचीला, सहसम्बन्धित, पूरक तथा शिशु-केन्द्रित हो शिक्षा मनोविज्ञान

बताता है कि पाठ्यक्रम बच्चों के लिए है, बच्चे पाठ्यक्रम के लिए नहीं हैं (Curriculum is for the child, child is not for the curriculum) स्कूल में पाठ्यक्रम से सम्बन्धित विभिन्न प्रकार की सरगर्मियां होनी चाहियें।

3. मनोविज्ञान तथा पाठ्य-पुस्तकें (Psychology and textbooks) –

                                                                                            शिक्षा मनोविज्ञान अध्यापकों को बताता है कि पुस्तकें रोचक हों तथा उनमें बच्चों के मानसिक स्तर के अनुसार काफी चित्र हों। इस प्रकार विद्यार्थियों को सीखने में बहुत सहायता मिल सकती है।

4. मनोविज्ञान और समय-सारणी (Psychology and time-table) –

                                                                                      शिक्षा मनोविज्ञान ने ही हमें बताया है कि समय-सारणी बनाते समय विषय के महत्त्व, विषय की कठिनाई, विद्यार्थियों की योग्यता, रुचि, थकान, विश्राम, व्यक्तिगत भेदों तथा मौसम का ध्यान रखना चाहिए।

5. मनोविज्ञान तथा शिक्षण विधियां (Psychology and methods of teaching) –

                                                       शिक्षा मनोविज्ञान इस बात पर जोर देता है कि विद्यार्थियों को पढ़ाते समय उनके व्यवहार, रुचियों, सम्भावनाओं तथा रुझानों का ध्यान रखना चाहिए। पढ़ाई का प्रबन्ध उचित ढंग से जीवन के साथ सम्बन्ध बताकर सीखने और करने का अनुसरण करके तथा श्रव्य-दृश्य सहायक साधनों की सहायता से करना चाहिए। बहुत सी पढ़ाई की विधियों यथा प्रोजैक्ट विधि (Project method), हारिस्टिक विधि (Heuristic Method), मांटेसरी विधि (Montessori Method) तथा प्ले-वे विधि (Play-way Method) का आधार बहुत से ठोस मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त हैं।

(i) मनोविज्ञान तथा श्रव्य-दृश्य साधन (Psychology and audo-visual aids) – यह मनोविज्ञान का योगदान है कि अध्यापक श्रेणी में पढ़ाते समय विभिन्न श्रव्य-दृश्य साधनों का प्रयोग करते हैं। यह प्रयोगों द्वारा सिद्ध हो चुका है कि श्रव्य-दृश्य साधन सीखने को आसान, रोचक तथा प्रभावशाली बनाते हैं।

(ii) मनोविज्ञान एवं नवीनीकरण(Psychology and innovations) - शिक्षा मनोविज्ञान ने शिक्षण एवं सीखने की प्रक्रिया में नये विचार देकर महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। (1) क्रिया केन्द्रित शिक्षण, (2) - विवेचन विधि, (3) खेल विधि, (4) अभिक्रमित शिक्षण कुछ महत्त्वपूर्ण नवीन विधियां हैं।

6. मनोविज्ञान तथा अनुशासन (Psychology and discipline) –

                                                                शिक्षा मनोविज्ञान अध्यापक की अनुशासन की समस्याओं को उत्तम विधि से हल करने में सहायता देता है। इसके द्वारा दमन, निराशा, चिन्ता तथा व्यमता दूर होते हैं और बच्चा कुसमंजन से बच जाता है। शिक्षा मनोविज्ञान हमें (1) समस्या, (2) पिछड़े, 3) कदाचारी, (4) विकलांग तथा (5) मेधावी बच्चों के साथ निपटने की विधियां बताता है। शिक्षा मनोविज्ञान बताता है कि अनुशासन आत्म-अनुशासन, गतिशील, धनात्मक तथा रचनात्मक होना चाहिए और यह लक्ष्यपूर्ण क्रिया द्वारा होना चाहिए। हर्ष तथा शोक, पुरस्कार तथा दण्ड और प्रशंसा तथा दोष का प्रयोग न्यायसंगत होना चाहिए।

7. मनोविज्ञान और अनुसंधान (Psychology and research) –

                                                                                            शिक्षा के क्षेत्र में अनेक अनुसंधान हो रहे हैं। मनोविज्ञान की बहुत सी परीक्षाओं (Psychological Tests) का इन अनुसंधानों में प्रयोग किया जा रहा है। नये-नये अनुसंधान अध्यापक को व्यवसाय के प्रति निष्ठावान बनाते हैं तथा उसको नवीनतम शिक्षण विधियों

का परिचय कराते हैं।

8. मनोविज्ञान एवं स्कूल प्रशासन (Psychology and school administration) –

                                                                                                     स्कूल और कक्षा में प्रशासन की पुरानी निरंकुश विधि लोकतन्त्र विधि में परिवर्तित हो चुकी है। प्रशासक एवं अध्यापक सहयोगी,सहानुभूतिपूर्ण तथा लोकतंत्रवादी हैं। शिक्षा मनोविज्ञान ने प्रशासन की समस्याओं को पारस्परिक वाद-विवाद द्वारा हल करने में सहायता प्रदान की है। इसने अध्यापक के निरीक्षण के लिये वैज्ञानिक आधार दिया है।

9. मनोविज्ञान एवं मूल्यांकन (Psychology and evaluation) –

                                                                                         शिक्षा मनोविज्ञान ने मापन तथा मूल्यांकन की विधियों के विकास तथा प्रयोग में महत्त्वपूर्ण योग दिया है। इन विधियों के माध्यम से छात्र की योग्यताओं के सही-सही मापन एवं मूल्यांकन का प्रयत्न किया जाता है। मापन एवं मूल्यांकन की नवीन विधियों ने शिक्षा में अपव्यय तथा अवरोधन (Wastage and stagnation) को कम कर दिया है। इससे छात्र को सही दिशा मिलती है और वह अपनी योग्यताओं का उचित विकास करता है।

10. मनोविज्ञान तथा अध्यापक (Psychology and teacher) –

                                                                           अध्यापक को शिक्षा मनोविज्ञान का धुरा कहा जाता है। शिक्षा की किसी भी विधि की सफलता अध्यापक पर आश्रित होती है। शिक्षा मनोविज्ञान बताता है कि अध्यापक का अपने विद्यार्थियों के प्रति व्यवहार प्रेम-भरपूर तथा सहानुभूतिपूर्ण होना चाहिए उसको अपने कार्य तथा संतुलित भावात्मक जीवन में वास्तविक रुचि होनी चाहिए। उसे अपने शिष्यों के स्तर के अनुसार चलना चाहिए। इसके अतिरिक्त शिक्षा मनोविज्ञान ही अध्यापक की विद्यार्थियों, पढ़ाई की विधियों तथा पढाई को परिस्थितियों को समझने में सहायता करता है।

डेविस के अनुसार 'शिक्षा मनोविज्ञान ने शिक्षा में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। इसने अनेक मनोवैज्ञानिक परीक्षणों की सहायता से छात्रों की क्षमतायें तथा व्यक्तिगत भेद, ज्ञान, विकास तथा परिपक्वता को समझने में भी योग दिया है।' (“Psychology has made distinct contribution to education through its analysis of pupils' potentialities and difference as revealed by means of various types of psychological tests. It has also contributed directly to knowledge of pupils' growth and maturation during the early years." -- Davis)

ऊपर दिये गए विचारों से हम इस परिणाम पर पहुंच सकते हैं कि शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षा की समस्याओं तथा परिस्थितियों में उचित ढंग से अपनी भूमिका अदा करता है और साथ ही साथ हमें शिक्षा समस्याओं को बहुत उचित, सर्वांगी, प्रभावशाली तथा एकीकृत ढंग से सुलझाने में सहायता देता है। सच तो यह है कि मनोविज्ञान ने शिक्षा को नई दिशा दी है और इसमें एक क्रान्ति ला दी है। इसी क्रान्ति के फलस्वरूप शिक्षण वैज्ञानिक हो गया है।

शिक्षा मनोविज्ञान दिन-प्रतिदिन उन्नति कर रहा है और इसके साथ-साथ इसका महत्त्व भी बढ़ रहा है

 

(7) शिक्षा मनोविज्ञान की त्रुटियां या दोष

(Limitations of Educational Psychology)

शिक्षा मनोविज्ञान के सीमा-बन्धन अथवा त्रुटियों का अध्ययन इसके स्वरूप तथा क्षेत्र को निर्धारित करने की एक महत्त्वपूर्ण विधि है। इसके कुछ दोष निम्नलिखित हैं:

1. नया तथा पेचीदा विज्ञान (New and complex science) - शिक्षा मनोविज्ञान एक नया तथा पेचीदा विज्ञान है, इसलिए हम इस क्षेत्र में अधिक उन्नति नहीं कर पाये। इसके साथ-साथ अभी यह एक एकीकृत विज्ञान नहीं है दूसरे विज्ञानों की भान्ति इसके असंख्य तत्त्व हैं परन्तु यह अभी बहु-संख्या तत्त्वों को एक सुप्रबन्धित लड़ी में बांधने के योग्य नहीं हुआ।

2. मनोवैज्ञानिक क्रिया की पेचीदगी (Complexity of psychological phenomena) – एक और कठिनाई यह है कि दूसरे भौतिक विज्ञानों की अपेक्षा मनोवैज्ञानिक क्रियाओं का अध्ययन पेचीदा तथा कठोर है।

3. व्यक्तिगत अंतरों की समस्या (Problem of individual differences) - व्यक्तिगत अंतरों की समस्या भी सामने आती है। स्मरण शक्ति, प्रत्यक्ष ज्ञान, तर्क शक्ति तथा सीखने की योग्यता सब लोगों में समान नहीं होती और हमें कई अवस्थाओं में यह मानना पड़ता है कि 'अन्य वस्तुएं समान होने की अवस्था में कोई बात सत्य है।' यह कथन अवैज्ञानिक है।

4. प्रयोगशाला के परिणामों को लागू करने की कठिनाई (Difficulty in applying laboratory findings) - हम भौतिक प्रयोगशालाओं के परिणाम स्कूल के विद्यार्थियों या श्रेणी के कमरे की परिस्थितियों पर लागू नहीं कर सकते। भौतिक प्रयोगशाला में प्रायः जानवरों पर प्रयोग किये जाते हैं और इन निष्कर्षों को स्कूल के बच्चों तथा कालेज अथवा विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों पर लागू नहीं किया जा सकता।

5. विरोधी व्याख्यायें (Conflicting interpretations) - शिक्षा मनोविज्ञान का एक और दोष अथवा कठिनाई यह है कि मनोविज्ञान के विरोधी स्कूलों की विरोधी व्याख्यायें काफी गड़बड़ी का कारण बन सकती हैं।

6. शिक्षण के स्वरूप से पैदा होने वाली कठिनाइयां (Limitations arising from the nature of teaching) –

                                       कुछ कलायें तथा कार्य ऐसे होते हैं जिनमें लिखे या बोले गए शब्दों का बहुत मूल्य होता है। इसके विपरीत कुछ कलायें तथा कार्य ऐसे होते हैं जिनमें केवल आदेशों द्वारा शिक्षा सम्भव नहीं होती। पार्टी में सुविधा अनुभव करने के लिए हम बोले अथवा लिखे शब्दों या आदेशों से कम लाभ उठाते हैं। लाभ अनुभव तथा रुझान पर अधिक आश्रित होता है। अतः पढ़ाने की कठिनाई पेश आती है। पार्टी में केवल आदेश हमारी सुविधा में सहायता नहीं देते। अनुभव तथा रुझान की भी आवश्यकता होती है। इस प्रकार हम देखते हैं कि शिक्षा मनोविज्ञान का ज्ञान काफी नहीं बल्कि अध्यापकों तथा विद्यार्थियों का प्राकृतिक रुझान तथा अनुभव भी महत्त्व रखता है।

 

स्टीफन (Stephen) ने अपनी पुस्तक में शिक्षा मनोविज्ञान की ये कठिनाइयां बताई हैं-

(1) शिक्षण (Teaching) के स्वरूप से पैदा होने वाली संभावित कठिनाइयां

(ii) विज्ञान (Science) के स्वरूप से पैदा होने वाली संभावित कठिनाइयां

(ii) मनोविज्ञान (Psychology) के स्वरूप से पैदा होने वाली संभावित कठिनाइयां

ऊपर दी गई चर्चा के प्रकाश में हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि मनोविज्ञान के सिद्धान्तों का शिक्षा में प्रयोग करना एक कठिन कार्य है।

 

(8) शिक्षा मनोविज्ञान का अध्यापक को लाभ

(Utility of Educational Psychology to the Teacher)

अथवा (Or)

शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में शिक्षा मनोविज्ञान की भूमिका

(Role of Educational Psychology in the Teaching-Learning Process)

अथवा ((Or)

शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षा मनोविज्ञान का योगदान अथवा कार्य

(Contribution or Functions of Educational Psychology in the Field of Education)

बहुत से शिक्षाशास्त्रियों तथा मनोवैज्ञानिकों ने शिक्षा मनोविज्ञान के अध्यापक के लिए महत्त्व पर ज़ोर दिया

(i) क्युनटिलियन (Quintilian) नामक एक रोमन शिक्षक कहता है कि अच्छे वक्ता को शिक्षित करने के लिए अध्यापक को बच्चे के स्वभाव से परिचित होना चाहिए। (“The train good orators, the teacher should know the nature of the child.")

(ii) थामस फुलर (Thomas Fuller) कहता है कि अध्यापक को उतना ही अधिक बच्चों के स्वभाव का अध्ययन करना चाहिए जितना कि पुस्तकों का। (“The successful teacher should read the nature of the pupils as much as he should read the books.")

(iin) जॉन एडम (John Adam) ने ज़ोर दिया है कि अध्यापक को जॉन तथा लातीनी दोनों को जानना चोहिए। (“The teacher should know John as well as Latin ")

(iv) पैस्तालोज़ी (Pestalozzi) ने शिक्षा को मनोविज्ञान में ढालना चाहा। वह तो यहां तक कहता है कि अध्यापक का मुख्य उद्देश्य शिष्य के मन का अध्ययन होना चाहिए। अतः शिक्षा योजना को मानसिक क्रियाओं के ठीक-ठीक ज्ञान पर निर्भर करना चाहिए।क्योंकि बच्चों का स्वभाव, बच्चा, जॉन (John) अथवा शिष्य का मन मनोविज्ञान है, इसलिए अध्यापक के लिए शिक्षा मनोविज्ञान का ज्ञान होना आवश्यक है।

(v) जोड (Joad) के शब्दों में, 'शिक्षा प्रत्येक व्यक्ति के वश का रोग नहीं" ("Teaching is not everybody's cup of tea") पढ़ाना एक कला है। सभी पढ़ा नहीं सकते। अध्यापक के लिए शिक्षा मनोविज्ञान का ज्ञान लाभप्रद ही नहीं बल्कि आवश्यक भी है क्योंकि इसके द्वारा उसे निम्नलिखित क्षेत्रों की जानकारी प्राप्त होती है

1. जन्मजात स्वभाव का ज्ञान (Knowledge of innate nature) –

                                                                                     बच्चा प्राकृतिक प्रेरणाओं, प्रवृत्तियों,सम्भावनाओं तथा रुचियों का स्वामी होता है ये जन्मजात गुण उसके स्वभाव के मुख्य चालक(Prime movers) होते हैं। वह अध्यापक, जो मनोविज्ञान का ज्ञान रखता है, बच्चे के अंतरजात (जन्मजात्) स्वभाव का ज्ञान प्राप्त करके एक सफल अध्यापक बन सकता है। इसके विपरीत वह अध्यापक जो मनोविज्ञान के ज्ञान से वंचित है, बिल्कुल असफल रहता है

 

2. व्यक्तिगत विभिन्नताओं का ज्ञान (Knowledge of individual differences) - कोई दो व्यक्ति समान नहीं होते। वे आयु, योग्यता, कुशलता, सम्भावनाओं, रुचियों, रुझानों, प्राप्तियों, लक्ष्यों, उद्देश्यों तथा और बहुत सी बातों में विभिन्न होते हैं। एक ओर मेधावी बच्चे होते हैं तो दूसरी ओर विकलांग बच्चे। उन सबको एक ढंग से नहीं पढाना चाहिये। यह तभी हो सकता है यदि अध्यापक बच्चे को अच्छी तरह समझता हो।

3. व्यवहार का ज्ञान (Knowledge of behaviour) –

                                                                      शिक्षा मनोविज्ञान बच्चे के विकास की विभिन्न अवस्थाओं में उसके स्वभाव को जानने में अध्यापक की सहायता करता है। इसके साथ-साथ यह उसके व्यवहार के शारीरिक तथा मनोवैज्ञानिक आधार को समझने में सहायता करता है यथा नाडी संस्थान, प्रन्थियां, रुचिया, मूल प्रवृत्तियां, संवेग, स्थायी भाव, प्रेरक, खेल, बुद्धि वंश तथा वातावरण इत्यादि। वह अध्यापक जो शिक्षा मनोविज्ञान के सैद्धान्तिक तथा क्रियात्मक पहलू से भली भान्ति परिचित है। बच्चे की विभिन्न रुचियों तथा मनोभावों को निखार सकता है, उसके अच्छे धनात्मक तथा वांछित मनोभावों का विकास कर सकता है, उसकी अन्तरजात रुचियों तथा उद्देश्यों को अपील कर सकता है और इस प्रकार अपने पाठ को अधिक रोचक तथा प्रभावशाली बना सकता है इसके विपरीत वह अध्यापक, जो शिक्षा मनोविज्ञान के ज्ञान से वंचित है, अपने पढ़ाने की विधियों को सफल रोचक तथा प्रभावशाली नहीं बना सकता।

4. सीखने का ज्ञान (Knowledge of learning) –

                                                                   शिक्षा मनोविज्ञान अध्यापक की शिक्षा के विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण करने में सहायता देता है यथा सीखने की विधि, सीखने के ढंग, सीखने के सिद्धान्न तथा सीखने के तत्त्व यह अध्यापक की इस बात में सहायता करता है कि वह श्रव्य-दृश्य साधनों की सहायता से विद्यार्थियों मन में ध्यान, रुचि तथा प्रेरणा उत्पन्न कर सके। इसके विपरीत वह अध्यापक, जिसे शिक्षा मनोविज्ञान का ज्ञान प्राप्त नहीं, सीखने के विभिन्न पहलूओं का विश्लेषण नहीं कर सकता और वह विद्यार्थियों के मन में ध्यान, रुचि तथा प्रेरणा पैदा नहीं कर सकता। वह अपने पाठ को अधिक सफल, रोचक तथा प्रभावशाली नहीं बना सकता।

5. अचेत मन का ज्ञान (Knowledge of unconscious mind) –

                                                                                          अध्यापक के लिए शिक्षा मनोविज्ञान का ज्ञान आवश्यक है क्योंकि वह उसकी विद्यार्थियों के अचेत मन को जानने में सहायता करता है। यह अचेत मन ही है जो मनुष्य के मन का मुख्य भाग है और किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में महत्त्वपूर्ण कार्य करता है। वह अध्यापक जो विद्यार्थियों के अचेत मन से परिचित होता है, उनके व्यक्तित्व के विकास में सहायता करता है।

6. मानसिक स्वास्थ्य का ज्ञान (Knowledge of mental hygiene) –

                                                                                   मानसिक स्वास्थ्य संतुलित व्यक्तित्व की रोड़ की हड्डी है। वह अध्यापक, जिसे शिक्षा मनोविज्ञान का ज्ञान प्रदान हुआ हो, अपने विद्यार्थियों के मानसिक स्वास्थ्य को विभिन्न सिद्धान्तों का अनुकरण करके धनात्मक पक्ष से कायम रखने की चेष्टा करेगा। वह विद्यार्थियों के खिचावों, निराशाओं, विरोधों, चिन्ताओं और समस्याओं को अरोग्य तथा उचित वातावरण पैदा करके दूर करने की चेष्टा करेगा। इसके विपरीत वह अध्यापक जिसको शिक्षा मनोविज्ञान का अच्छी तरह ज्ञान नहीं है, विद्यार्थियों का मानसिक स्वास्थ्य कायम रखने में सफल नहीं हो सकता और इस प्रकार उसके विद्यार्थी निराश तथा

कुसमंजित हो सकते हैं।

7. नौकरी का ज्ञान (Knowledge of one's own job) –

                                  शिक्षा मनोविज्ञान अध्यापक को अपनी नौकरी का ज्ञान प्राप्त करने में सहायता करता है। यह अध्यापक को विभिन्न समस्याओं को सुलझाने के लिये सूझ प्रदान करता है। यह अध्यापक की शैक्षिक समस्याओं के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने में सहायता करता है। शिक्षा मनोविज्ञान की सहायता से ही अध्यापक अपने स्वभाव, व्यवहार, योग्यता आदि का ज्ञान प्राप्त करता है। यह ज्ञान उसे अपने शिक्षण कार्य में सफल बनाने में सहायता देता है और इस प्रकार उसको व्यावसायिक तैयारी में योग देता है। स्किनर का कथन है, 'शिक्षा मनोविज्ञान अध्यापकों की तैयारी की आधारशिला है+ ("Educational psychology is the foundation stone in the preparation of teachers." Skinner)

8. निर्देशन का ज्ञान (Knowledge of guidance) –

                                                                             शिक्षा मनोविज्ञान अध्यापक की छात्रों की रुचियों,अभिरुचियों, योग्यताओं, प्राप्तियों, समस्याओं, शैक्षिक एवं व्यावसायिक योजनाओं को समझने में सहायता करता है तथा उसे उनको निर्देशन देने में योग देता है।

9. अध्यापक-छात्र सम्बन्ध में सुधार (Improvement in teacher-taught relationship) –

                                                                                   बुनियादी रूप से अध्यापक-छात्र सम्बन्ध मनोवैज्ञानिक है। शिक्षा मनोविज्ञान अध्यापक एवं मुख्याध्यापक की छात्रों से अच्छे सम्बन्ध रखने में सहायता करता है। यह अध्यापक की छात्रों के प्रति सहानुभूति तथा विवेकपूर्ण दृष्टिकोण अपनाने में सहायता करता है।

10. प्रयोगात्मकता एवं अनुसंधान (Experimentation and research) –

                                                                                                     शिक्षा मनोविज्ञान का ज्ञान अध्यापक को शिक्षा के क्षेत्र में प्रयोग करने के लिये प्रोत्साहित करता है। अपनी खोजों द्वारा अध्यापक नये तथ्य दे सकता है तथा शिक्षण एवं शिक्षा के क्षेत्र में सुधार कर सकता है।

11. मापन एवं मूल्यांकन (Measurement and evaluation)

                                                                                         शिक्षा मनोविज्ञान अध्यापक को छात्रों की प्राप्तियों के मापन एवं मूल्यांकन की ठोस विधियां प्रदान करता है। वह छात्रों को रुचियों अभिरुचियों योग्यताओं प्राप्तियों तथा व्यक्तित्व के अन्य पहलूओं को जानने के लिए मनोवैज्ञानिक परीक्षाओं एवं विधियों का प्रयोग कर सकता है (शिक्षा मनोविज्ञान अध्यापक की केवल छात्रों का मूल्यांकन करने में ही नहीं बल्कि अध्यापक के रूप में उसकी अपनी योग्यता को जानने में भी सहायता करता है।

12. पाठ्यक्रम में सुधार (Improvement in curriculum)

                                                                               शिक्षा मनोविज्ञान ने पाठ्यक्रम में महत्त्वपूर्ण सुधार किया है। इसने खेलों, स्काऊटिंग, पिकनिक, नृत्य, कैंपों, वैराईटी प्रोग्रामों आदि पाठ्य सहायक क्रियाओं पर जोर दिया है क्रियात्मक एवं प्रभावशाली होने के लिये पाठ्यक्रम मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों पर आधारित होना चाहिए। विभिन्न अवस्थाओं पर पाठ्यक्रम का निर्माण करने के लिये मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों का प्रयोग किया जाता है। पाठ्यक्रम छात्रों की आवश्यकताओं, रुचियों, अभिरुचियों, योग्यताओं, क्षमताओं तथा समाज को आवश्यकताओं के अनुसार निर्धारित किया जाना चाहिए। मनोविज्ञान इन बातों का ज्ञान प्रदान करके अध्यापक को

विभिन्न अवस्थाओं के छात्रों के लिये उपयोगी पाठ्यक्रम का निर्माण करने में सहायता देता है।

13. शिक्षण विधियों में सुधार (Improvement in teaching methods) - शिक्षा मनोविज्ञान ने आधुनिक शिक्षण विधियों में क्रान्ति ला दी है। शिक्षण अधिक वैज्ञानिक, अधिक सुगम एवं उद्देश्य केन्द्रित हो गया है। शिक्षा मनोविज्ञान अध्यापक को सीखने की प्रक्रिया, सीखने एवं शिक्षण को प्रभावशाली विधियों तथा कारकों की जानकारी प्रदान करता है तथा उसे शिक्षण की प्रक्रिया में इनका उचित प्रयोग करने के योग्य बनाता है। शिक्षा मनोविज्ञान का ज्ञान ही अध्यापक को श्रेणी में विभिन्न श्रव्य-दृश्य साधनों (Audio-visual aids) का प्रयोग करने में सहायता करता है। शिक्षा मनोविज्ञान ने अध्यापकों की विभिन्न नवीन विधियों यथा क्रिया-केन्द्रित शिक्षण, वाद-विवाद विधि, अभिक्रामत शिक्षण विधि को अपनाने में सहायता की है (मनोविज्ञान बताता है कि जब तक अध्यापक छात्रों में सीखने के लिये रुचि विकसित नहीं करता तब तक वह उन्हें वह विषय सफलतापूर्वक नहीं पढ़ा सकता। अतः वास्तव में मनोविज्ञान ने विभिन्न शिक्षण विधियों को अपनाने में सहायता की है।

14. अनुशासन में सुधार (Improvement in discipline) - शिक्षा मनोविज्ञान अध्यापक को अनुशासन कायम करने और रखने की अनेक विधियां बताता है। यह अध्यापक को अनुशासन की समस्याओं को उत्तम विधि से हल करने में सहायता देता है। यह हमें बताता है कि अनुशासन आत्म-अनुशासन (Self-discipline), गतिशील (Dynamic), धनात्मक (Positive) तथा रचनात्मक (Constructive) होना चाहिए। पुरस्कार तथा दण्ड और प्रशंसा तथा दोष का प्रयोग न्याय संगत होना चाहिए। शिक्षा मनोविज्ञान ही हमें पिछड़े, कदाचारी, समस्या तथा मेधावी छात्रों के साथ निपटने की विधिया बताता है मैलवी (Melvi) ने लिखा है-'जो शिक्षक अपने छात्रों को रुचि के अनुसार शिक्षा देते हैं, उनके सामने अनुशासन की कठिनाइयां बहुत कम आती हैं। जब हम पाठ्यक्रम, शिक्षण विधियों और शिक्षण सामग्री में सुधार करते हैं, तब हम अनुशासन की समस्याओं का पर्याप्त समाधान कर देते हैं या उनका अन्त कर देते हैं।'


NOTE:IMAGE TAKEN FROM INTERNET 


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